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ग़ज़ल : समझा था जिसको आम वो बंदा खजूर था

बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२

------------

अपनी मिठास पे उसे बेहद गरूर था

समझा था जिसको आम वो बंदा खजूर था

 

मृगया में लिप्त शेर को देखा जरूर था

बकरी के खानदान का इतना कसूर था

 

दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला

दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था

 

शब्दों में विश्व जीत के शब्दों में छुप गया

लगता था जग को वीर जो शब्दों का शूर था

 

हीरे बिके थे कल भी बहुत, आज भी बिकें

लेकिन नहीं बिका जो कभी, कोहिनूर था

 

शब भर मैं गहरी नींद में कहता रहा ग़ज़ल

दिन में पिये जो अश्क़ ये उनका सुरूर था

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 8:14pm

मृगया में लिप्त शेर को देखा जरूर था

बकरी के खानदान का इतना कसूर था

 

दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला

दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था ----- आ. धर्मेन्द्र भाई , एक और बेहतरीन गज़ल पढवाने के लिये आपका शुक्रिया ! और गज़ल के लिये बधाइयाँ ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 9, 2014 at 6:32pm

दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला
दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था

वाह खूब कहा है भाई जी बधाई .............

Comment by Shyam Narain Verma on December 9, 2014 at 4:07pm

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक सादर बधाई कबूल करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 9, 2014 at 3:29pm

आदरणीय धर्मेन्द्रभाई, आपकी ग़ज़ल की तासीर चढ़ते-चढ़ते चढ़ती है.
वैसे तो यह पूरी ग़ज़ल अपनी रौ में है लेकिन दिल्ली और कोहिनूर वाले शेरों का तो कहना ही क्या. लेकिन जिस शेर ने बस मोह लिया वो आखिरी शेर था.
दिल से दाद स्वीकारें भाई.

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 9, 2014 at 3:01pm
वाह भाई वाह दिल जीत लिया वाह बहुत बधाई हो!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 9, 2014 at 2:02pm

शब भर मैं गहरी नींद में कहता रहा ग़ज़ल

दिन में पिये जो अश्क़ ये उनका सुरूर था---------- behtareen gajal .

-----------


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 11:32am

//दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला
दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था //

वाह वाह बहुत खूबसूरत अश'आर कहे हैं भाई धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, दिली बधाई हाज़िर है।

Comment by somesh kumar on December 9, 2014 at 9:53am

दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला

दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था

शब भर मैं गहरी नींद में कहता रहा ग़ज़ल

दिन में पिये जो अश्क़ ये उनका सुरूर था

mere dil ki bat to in lines me mili ,sunder gzl bdhaiyan

-----------

 

Comment by ajay sharma on December 8, 2014 at 9:55pm

हीरे बिके थे कल भी बहुत, आज भी बिकें

लेकिन नहीं बिका जो कभी, कोहिनूर था

 bahut khoob 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 8, 2014 at 9:20pm

हीरे बिके थे कल भी बहुत, आज भी बिकें

लेकिन नहीं बिका जो कभी, कोहिनूर था

अति सुन्दर!

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