For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश "नूर"--कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.

२१२२, ११ २२, ११२२, २२/ ११२ 
.

आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,
अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना.
.

ये सफ़र ज़ीस्त का था, साथ चली रुसवाई,
देखना बाक़ी रहा...राह का मंज़िल होना.
.

इक सफ़र चलता रहा उसके फ़ना होने तक,
एक हसरत थी लहर की, कभी साहिल होना.

.

जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम,
रोज़ महसूस किया, याद का...महफ़िल होना.  
.

बोझ नाक़ाम सी हसरत का उठाकर देखो,
कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.
.

“नूर” इल्ज़ाम उठाकर लगे जीना मुश्किल,
हाय!! आसाँ भी नहीं ख़ुद का ही क़ातिल होना.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:43am

आदरणीय निलेश जी, इस बेहतरीन गज़ल के लिये बधाइयाँ       

आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,
अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना....................वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by वेदिका on July 8, 2014 at 9:37am

जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम, 
रोज़ महसूस किया, याद का...महफ़िल होना.  

सशक्त तर्क! खूबसूरत गजल हुयी है|

बधाई आदरणीय!!  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 8:20pm

बहुत बहुत धन्यवाद इस हौसला अफज़ाई के लिए आ. केवल प्रसाद जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 7, 2014 at 7:05pm

आ0 नीलेश भाईजी,  बहुत सुन्दर गजल हुई है।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:26pm

धन्यवाद आ. नरेन्द्र सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:26pm

धन्यवाद आ. अरुन  शर्मा जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:25pm

धन्यवाद आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:25pm

शुक्रिया आ.  Dr Ashutosh Mishra जी ... आपके कहे अनुसार .जब मैंने देखा तो सचमुच कुछ गड़बड़ थी ..सुधारने कि कोशिश की है.
धन्यवाद  

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:21pm

आदरणीय नीलेश भाई जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 3:19pm

आदरणीय नीलेश भाई , एक उम्दा गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service