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ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:23pm

आदरणीय धर्मेंद्र जी आपका हार्दिक आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 4:14pm

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी..लाजबाब 

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी....बेहतरीन रचना इस बेहतरीन रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 30, 2014 at 12:02pm

ये और बात थी कि वो भी बेकरार लगी --यह तो कोई पुरुष लिख सकता है i आपके जेहन में यह ख्याल कैसे आया i जो भी हो गजल अच्छी है i बधाई i

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 29, 2014 at 4:13pm

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब....

Comment by Sushil Sarna on May 29, 2014 at 3:17pm

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी.……………… आआआआआह गज़ब के अशआर .... जितनी भी तारीफ़ करें वो कम ही होगी .... बहरहाल इस शानदार ग़ज़ल के लिए आप निश्चित रूप से बधाई की हकदार हैं … दिली दाद कबूल फ़र्माईन आदरणीय संजू जी

Comment by coontee mukerji on May 29, 2014 at 1:27pm

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी.....बहुत सुंदर

Comment by Shyam Narain Verma on May 29, 2014 at 11:42am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 8:51am

बहुत खूब संजू जी बेहद असरदार ग़ज़ल कही है आपने


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 27, 2014 at 9:08pm

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी --------- बहुत खूब आदरणीया , अनेकों बधाइयाँ , गज़ल के लिये और इस शे र के लिये ॥

Comment by बृजेश नीरज on May 27, 2014 at 7:36pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

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