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( ग़ज़ल ) दुश्मनी ही, मोल लें क्या ( गिरिराज भन्डारी )

2122          2122  

दस्तो बाज़ू खोल  लें क्या

फिर परों को तोल लें क्या

 

शब्दों  में धोखे  बहुत  हैं

मौन में  ही बोल  लें क्या

 

दोस्त के  क़ाबिल नहीं वो

दुश्मनी ही,  मोल लें क्या

 

और  कितना  हम  लुटेंगे

हाथ  में  कश्कोल लें क्या ------ कश्कोल - भिक्षापात्र

 

दिल हमारा ,साफ  है  तो

रंग, कुछ भी घोल लें क्या

 

नीम है , हर  बात उनकी

हम ही मीठा ,बोल लें क्या

 

ठीक है, प्यारी  बहुत  हो 

अब बजाने ,ढोल लें  क्या  

*************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 6:49pm

आदरणीय गजेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ! आपकी सलाह बहुत सुन्दर हैं , मै ग़म्भीरता से विचार कर रहा हूँ ! आपका पुनः आभार । बाक़ी रही गुस्ताखी की बात , ओ बी ओ मे आप ऐसा संकोच करना छोड- दीजिये , यहाँ सभे सीख रहे हैं , एक दूसरे से !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 5:40pm

आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन अशआर हुये हैं बहुत बहुत बधाई आपको

//और  कितना  हम  लुटेंगे

हाथ  में  कश्कोल लें क्या

नीम है , हर  बात उनकी

हम ही मीठा ,बोल लें क्या// खासतौर पर ये अशआर बहुत पसंद आये

आपकी इस ग़ज़ल का अंदाज़ जॉन एलिया जैसा लगा

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 12:39pm

छोटे भाई गिरिराज 

शब्दों  में धोखे  बहुत  हैं

मौन में  ही बोल  लें क्या

बहुत अच्छी गज़ल , हार्दिक बधाई 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 3, 2014 at 8:55am

आदरणीय गिरिराज जी
बहुत सुंदर पेशकश..मुबारकबाद क़ुबूल करें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 3, 2014 at 3:29am

और  कितना  हम  लुटेंगे

हाथ  में  कश्कोल लें क्या.............सच!  एक झुंझलाहट सी होती है,जो इंसान अपने उदार भाव से अपना सब कुछ खो कर भी, कुछ नही पाता हो

दिल हमारा ,साफ  है  तो

रंग, कुछ भी घोल लें क्या.............बहुत सही, वास्तविकता को कैसे खोखला बनाया जा सकता है.

बहुत अच्छी गजल लगी आदरणीय गिरिराज जी, तहे दिल से बधाइयाँ स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 2, 2014 at 11:31pm

छोटी बहर की उम्दा गज़ल के लिए बधाई........

झूमते हो आप गा के

सुन गज़ल हम डोल लें क्या ?

Comment by Gajendra shrotriya on May 2, 2014 at 11:26pm

शानदार और दमदार अशआर………उम्दा ग़ज़ल आदरणीय। बहुत बधाई।

एक निवेदन

दोस्त के क़ाबिल नहीं वो

मेरी राय मे इस मिसरे को इस तरह कहें तो कहन और स्पष्ट हो सकती है।
दोस्त तो क़ाबिल नहीं वो
दुश्मनी ही, मोल लें क्या

इसी तरह
अब बजाने ,ढोल लें क्या
के स्थान पर
हाथ में अब ढोल लें क्या
किया जा सकता है।

क्षमा करें यदि मुझसे कोई गुस्ताखी हुई हो।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2014 at 10:18pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2014 at 10:17pm

आदरणीया सरिता जी , आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2014 at 10:16pm

आदरणीय नादिर खान भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!

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