For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुनिया में जितना पानी है

उसमें

आदमी के पसीने का योगदान है

 

गंध भी होती है पसीने में

 

हाथ की लकीरों की तरह

हर व्यक्ति अलग होता है गंध में

फिर भी उस गंध में

एक अंश समान होता है

जिसे सूँघकर

आदमी को पहचान लेता है

जानवर

 

धीरे-धीरे कम हो रही है

यह गंध

कम हो रहा है पसीना

और धरती पर पानी भी  

-  बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on January 29, 2014 at 10:55am

आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on January 29, 2014 at 10:55am

आदरणीया मंजरी जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 29, 2014 at 10:14am

सच! वर्तमान में इन्सान, कर्तव्य के बिना ही अधिकार पाना चाहता है परिश्रम और पसीने का मोल उसे नही पता

बहुत गहन व् मन को छू जाने वाली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 9:12am

बिना श्रम के तो पानी भी नसीब नहीं ...पसीना और पानी को केन्द्रित कर बहुत गहन मर्म को लेकर रची रचना के लिए ढेरों बधाई ...बहुत सुन्दर बात कही है 

Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 2:36am

इस अच्छी रचना के लिए बधाई।

Comment by mrs manjari pandey on January 27, 2014 at 10:26pm

       

     आदमीयत की बात अच्छे तरीके से की है आदरणीय बृजेश जी । बधाई स्वीकारें ।

Comment by बृजेश नीरज on January 27, 2014 at 9:54pm

आदरणीय श्याम नारायण जी, लक्ष्मण धामी जी, गिरिराज जी, नीरज कुमार जी, आदरणीया मीना जी, अन्नपूर्णा जी, वंदना जी आप सभी का हार्दिक आभार! रचना को आपका अनुमोदन मेरा उत्साहवर्धन कर रहा है!

सादर!

Comment by Vindu Babu on January 27, 2014 at 9:36pm

गंध...सुन्दर चित्रण किया है आदरणीय।

टैगोर जी 

ने व्यक्ति विशेष की विशेष गंध की याद से गहन आत्मीयता को दर्शाया है।

कम शब्दों में गहन प्रस्तुति करने के लिए बधाई।

सादर

Comment by Neeraj Neer on January 27, 2014 at 8:57pm

धीरे धीरे कम हो रहा है पसीना और धरती पर पानी भी , बहुत खूब .. जब पसीना बहाने वाले लोग नहीं रहेंगे , धरा भी नहीं रहेगी .. बहुत बधाई , सुन्दर रचना के लिए ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2014 at 6:57pm

आदरणीय बृजेश भाई , सच मे इंसानो मे इंसानियत अब खत्म होते जा रही है । सुन्दर रचना के लिये बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service