For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,

नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1058

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:49am

आदरणीया वंदना जी आपने उचित प्रश्न उठायें हैं. अनुस्वार  और अनुनासिक के बारे में जो जानकारी आपने दी है वह मैं इसी मंच पर पढ़ चुका हूँ. एक प्रयोग के तौर पर मैंने इन शब्दों प्रयोग किया है, गुरुजनों की  प्रतीक्षा है मार्गदर्शन अवश्य करेंगे.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:42am

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज सर स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:42am

भाई अजय कुमार शर्मा जी सुधार आपके और मेरे अनुसार तो ठीक है किन्तु आपने तो बेबह्र सुधार बताये हैं भाई, मतला आपने बेबह्र कर दिया और दूसरा शेर आपके सुधार के अनुरूप तदाबुले रदीफ़ का दोष उत्पन्न हो गया. क्या आपके द्वारा किया गया सुधार ठीक है आप ही देख लें. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:38am

हार्दिक आभार आदरणीय सारथी भाई जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:37am

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सर, आमोद भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:37am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जीतेंद्र भाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 10:37am

हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी जी

Comment by vandana on January 5, 2014 at 8:23am

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,...... बहुत शानदार आदरणीय अरुण जी 

कुछ बातें साझा करना चाहूँगी जो अब तक मैनें जानी हैं

यहाँ लिए गए काफिये - जो संभवत: इस प्रकार हैं -

काफिया - मूल शब्द - लिखा जा सकता है 

इन्तहाँ - इन्तहा -देखा गया है कि इन्तहां भी लिखा  गया (यह सही है या नहीं, पता नहीं )

जाँ - जान -  जां

 हाँ-हाँ 

 बेलगाँ- शायद आपने बेलगाम को इस रूप में लिखा है 

 जवाँ- जवान -जवां 

बेजबाँ- बेजबान (बेजुबान) - बेजुबां / बेजबां

हिंदी में हम पढ़ते हैं अनुस्वार  और अनुनासिक :- स्वर के बाद  बोला जाने वाला  हलंत (अर्ध ध्वनि) अनुस्वार कहलाता है जिसका उच्चारण अनुनासिक वर्णानुसार किया जाता है ! इसका चिन्ह वर्ण के ऊपर बिंदी (ं) होता  है जैसे बिंदी असल में बिन्दी है इसका प्रयोग इस स्थिति में होता है कि  जिस अक्षर पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग होता है उसका अगला अक्षर जिस वर्ण समूह से है यह उसी से सम्बन्धित होता है जैसे बिंदी में द से सम्बन्धित पंचम वर्ण है न और पंचांग में च और ग अक्षर से पहले  (ं) हैं तो शुद्ध रूप है पञ्चाङ्ग

चंद्रबिंदु अनुनासिक स्वर हैं और अनुस्वार अनुनासिक व्यंजन हैं चन्द्र बिंदु के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता केवल इ ई ए ऐ ओ औ की मात्राओंको छोड़ कर जैसे हैं और में यहाँ बिंदी चंद्रबिंदु को प्रकट करती है   यानि हँस और हंस में अंतर है अर्थ के तौर पर भी 

यही बात यहाँ  भी लागू है हाँ का मेल जबां , जवां के साथ नहीं होना चाहिए और उर्दू में भी न का लोप तो बिंदी के रूप में होता है जैसे जबां इम्तेहां पर बेलगाम के म को बिंदी के रूप में नहीं लिखा जाना चाहिए वैसे उर्दू में कोई अधिकृत घोषणा नहीं कर सकती क्योंकि हल्दी  की गाँठ वाली स्थिति  है मेरी .....अत: यहाँ मंच के वरिष्ठ जानकार सदस्यों से मार्गदर्शन की आशा है | 

आशा है आप मेरी बातों को परस्पर सीखने के भाव से ही लेंगे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 5, 2014 at 8:17am

आदरणीय अरुण अनंत भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है !! आपको बधाइयाँ ॥

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,    

नाम बदनाम हो न महफ़िल में, 
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..  -------------- दोनो शे र लाजवाब लगे , बहुत सारी बधाइयाँ ॥

Comment by ajay sharma on January 4, 2014 at 10:04pm

kshma kare par.......kintu rachna me katipaya .....sudhar mere anusaar achhe rahenge 

इश्क में डूब kar इन्तहाँ कर ली, 
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,

भा गई सादगी hame unki ,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ ( ? ) कर ली,

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,      wah wah wah wah wah speechless

नाम बदनाम हो न महफ़िल में, 
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..      bahut khoob.........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
44 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी दोनों सहकर्मी है।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। कई…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मिथिलेश जी, इतना ही कहूँ,   ... ' पहचान पता न चले। बस। ' रहस्य - रोमांच…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय उस्मानी जी, लघुकथा की मार्मिकता की परख हेतु आपका दिली आभार। "
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा को मान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय, मिथिलेश जी। "
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service