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फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या(ग़ज़ल)

2122 -1212- 112

कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या

फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या

 

आदमीयत के मोल जो मिली हो

दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या

 

मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या

 

छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या

 

और के काम आ सके न कभी

ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या

 

भाग के गर मुसीबतों से कहीं

बच ही जाये तो ऐसी जान भी क्या

 

एक चिंगारी से लगी थी आग

अब बचेगा मेरा मकान भी क्या

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 17, 2013 at 10:00am

भाई जितेन्द्र जी आपका शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:18am

मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या

छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या

 

बहुत खूब भाई जी ... ये दो शेर ख़ूब पसंद आये

Comment by कल्पना रामानी on December 16, 2013 at 11:34pm

बहुत सुंदर गजल, आदरणीय शिज्जु जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on December 16, 2013 at 10:40pm

सुन्दर ग़ज़ल भाई सिज्जू जी हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Maheshwari Kaneri on December 16, 2013 at 10:10pm

 बेहतरीन गज़ल ..आपको  बधाइयाँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 16, 2013 at 8:52pm

आदरणीय शिज्जू जी, बेहतरीन गजल, यह शेर खास पसंद हुए  दिली दाद कुबूल कीजिये

और के काम आ सके न कभी

ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या

 

भाग के गर मुसीबतों से कहीं

बच ही जाये तो ऐसी जान भी क्या


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 8:13pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 8:12pm

आदरणीय गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 8:12pm

आदरणीया कुन्तीजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 8:11pm

आदरणीया मीना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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