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गज़ल -मेरे पीछे रुधन क्यों है

1222 1222

मेरे पीछे रुधन क्यों है
ये अश्कों का बज़न क्यों है

सजाया है जनाजे पर
उधारी का कफ़न क्यों है

कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है

बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है

चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है

हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों है


मौलिक एंव अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 944

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Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 10, 2013 at 9:34pm

बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है

अति सुन्दर ....बधाई हो आदरणीय उमेश जी आपको

Comment by coontee mukerji on December 10, 2013 at 9:28pm


बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है

चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है

हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों...........बहुत सुंदर.

सादर

कुंती

Comment by umesh katara on December 10, 2013 at 9:03pm

आदरणीय तपन डी गज़ल की पसन्दगी के लिये हार्दिक आभार

Comment by umesh katara on December 10, 2013 at 9:03pm

आदरणीय डा.गोपाल नारायन जी हार्दिक आभार सत्य ही कहा है रुदन--का अर्थ से मेरा मतलब  रोना ही है

Comment by umesh katara on December 10, 2013 at 9:01pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra ji हार्दिक आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 10, 2013 at 8:56pm

आदरणीय उमेश जी ..बहुत सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Tapan Dubey on December 10, 2013 at 7:53pm
आदरणीय डॉ गोपाल जी,अर्थ बताने के लिए धन्यवाद
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 10, 2013 at 7:33pm

कटारा जी

बहुत अच्छे से निभाया  i  मजा आ गया i

तपन जी को रुदन का अर्थ व्बता दे i

मेरी समझ में रोना यदि क्रिया है,  तो रुदन संज्ञा है  i  

Comment by Tapan Dubey on December 10, 2013 at 6:29pm
आदरणीय उमेश जी , सबसे पहले बहुत अच्छी गजल के लिए बधाई ....... और आदरणीय उमेश जी रुदन शब्द से में वाकिफ नहीं हूँ अगर आप इसका अर्थ भी बतायेगे तो मुझ जैसे सिखने वाले के लिए अच्छा रहेगा धन्यवाद
Comment by umesh katara on December 10, 2013 at 5:02pm

शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी 
जी हाँ रुदन ही कहना था 

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