For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है

1 2 2 2      1 2 2 2       1 2 2 2

मेरे किरदार पे वो शक जताता है

बिना ही बात वो तेवर दिखाता है

 

नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी

मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है

 

बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर

मेरा ये दिल उसे अपना बताता है

 

*निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है  

 

मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल

मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है

*सशोधित

संजू शाब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 929

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 1, 2013 at 12:48pm

बहुत शानदार!! रिश्तों की अहमियत को दरकिनार करने वाले चरित्र पर सीधे- सीधे प्रहार करते हुए अशआर ,जैसे अंगार की स्याही में डुबो कर लिखे हों वाह ,गीतिका जी की बात का समर्थन करुँगी ,बहुत बहुत बधाई इस मुसलसल ग़ज़ल पर संजू जी 

बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर

मेरा ये दिल उसे अपना बताता है----बहुत सुन्दर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 12:30pm

वाह वाह आदरणीया संजू जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल क्या कहने बहुत बहुत बधाई आपको

मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल

मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है .. इस शेर के लिए विशेष तौर से दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 11:07am

क्या बात है बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीया संजू जी ./.......दिली दाद हाजिर है

लेकिन ये कौन है जो

जिसे दिल आपका अपना बताता है 

वही सम्मान की धज्जी उड़ाता है

Comment by Sarita Bhatia on December 1, 2013 at 11:01am

वाह वाह संजू जी खुबसूरत गजल अन्तस मन की व्यथा उकेरती हुई ,हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 1, 2013 at 9:10am

वाह संजू जी आपकी इस ग़ज़ल में आपका अलग ही रूप देखने को मिला, बहुत खूब, बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 1, 2013 at 6:32am

आदरणीया संजू जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , हर शे र कामयाब हैं , !!! आपको तहे दिल से बधाई !!!!! 

बाक़ी आदरणीया गातिका जी ने कह दिया है , तदानुसार सुधार कर लें !!!!

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 1, 2013 at 1:39am

नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी

मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है.............वाह! बहुत खूब, कटाक्ष वार करता हुआ शेर

सच! एक से बढ़कर एक शेर, लाजवाब गजल पर दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीया संजू जी

Comment by वेदिका on December 1, 2013 at 1:03am

मेरे किरदार पे वो शक जताता है

बिना ही बात वो तेवर दिखाता है.... अर्थपूर्ण मतला, जिसकी पहुँच सीधे आत्मा को है!

 

बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर

मेरा ये दिल उसे अपना बताता है ......................अहा! खूब निभाया है आपने अपनेपन को| इस शेर पर दिल ओ जान से कुर्बान होने को जी चाहता है!  

 

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है ......................जिस शिद्दत से इस शेअर का जन्म हुआ है, उसकी तह मै बहुत इतमीनान से टटोल आई हूँ|  पहले मिसरे मे की के स्थान पर के का होना लग रहा है|

 

मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल

मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है .................... एक दोयम चरित्र का आंकलन आपने बहुत खूब किया है|

वैसे हर घड़ी हर पल का प्रयोग एक साथ हो सकता है क्या?

उलझे अंतस को एक परिभाषा देती हुयी निहायत बहुत खूबसूरत और गंभीर गज़ल हुयी है! इस रचना के निर्माण पर आपको हार्दिक बधाई देती हूँ और आपको आभार भी व्यक्त करती हूँ, आपने इसे हमसे साझा किया!! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service