For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल -साँस लेने में दखल देता है

2 1 2 2  1 1 2 2   2 2

वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है

जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है

राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है

मैं  उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है


उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 928

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanju shabdita on October 23, 2013 at 8:27pm

aap sabhi sudhijanon ka mera hriday se aabhar....aapke anumodan se likhna sarthak hua..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 3:04am

उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है... 

क्या अंदाज़ है.. !!!

बधाई-बधाई-बधाई !

Comment by Meena Pathak on October 13, 2013 at 7:42pm

बहुत खूब .... बधाई आप को 

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:19pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by mrs manjari pandey on October 12, 2013 at 9:38pm

     

   उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है                  बहुत नाज़ुक और उम्दा गज़ल ! संजू जी बधाई कुबूल करें !

                              

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 12, 2013 at 6:03pm

बहुत ही खूबसूरत  ग़ज़ल...................विशेषकर यह अश'आर बेहद पसंद आया...........

जाने आदत भी लगी क्या उसको 
खुद की ही बात बदल देता है 

राज़ की बात उसे मत कहना 
बाद में राज़ उगल देता है 

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 1:46am

जिंदाबाद जिंदाबाद

आपकी अब तक की सबसे बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ
एक एक शेर को आपने तराशा है
एक एक शेर पर ढेरो दाद देता हूँ ....मतला बेपनाह खूबसूरत हुआ है ....

जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है

इस शेर की जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी
आख़िरी शेर भी बहुत शानदार है
बहर को बहुत को अच्छे से निभाया है ...

भविष्य की जानकारी के लिए ... दखल का मूल वज्न २१ होता है क्योकि मूल शब्द दख्ल होता है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 4:06pm

आदरणीय संजू जी उसको मालूम नहीं, गम में भी 
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है ..बेहतरीन ग़ज़ल का ये शेर तो बिलकुल दिल को छू गया ..ढेरो बधाइयों के साथ 

Comment by vandana on October 11, 2013 at 7:11am

उसको मालूम नहीं, गम में भी 
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है

वाह आदरणीया संजू जी बहुत खूब 

Comment by ajay sharma on October 10, 2013 at 11:01pm

वो मेरी रूह मसल देता है 
साँस लेने में दखल देता है  bahut hi khoob .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service