For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

               रक्तधार

विगत संबंधों से स्पंदन करती   

पुरानी रक्तधार

सूखी नदी-सी सूख चुकी है,

पर मात्र स्मृति किसी एक संबंध की

जैसे नदी के सूखे तल को

आ कर ज्वार-भाटा-सी भिगो देती है।

विसंगत प्रसंगों में समन्वय ढूँढते

कितने वियोगाँत दृश्य

दुहरा जाते हैं विप्लव-से झट से

                     मेरी आहत आँखों में ...

              

आज मैंने डाल पर देखा

कोई उदास आँखों वाला

ठिठुरता रक्ताक्त पक्षी,

आशंकित,

झिझक रहा था लौट आने को डाल पर,

और फिर जा बैठा वह उसी डाल पर

क्षत-विक्षत हुआ था

               जिस डाल पर वह बार-बार।

... और मुझको लगा

           उस पक्षी का नाम ‘विजय’ था।

                           ---------

                                                    -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:16pm

आदरणीया विनीता जी:

 

मेरी कविता की ऐसी सराहना से

मनोबल बढ़ाने के लिए आपका आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:12pm

आदरणीया मंजरी जी:

 

सराहना के लिए आपका अतिशय धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 20, 2013 at 9:11pm

आदरणीया आरती जी:

 

आपके उत्साहवर्धक शब्दों को नमन।

मेरा हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Dr.Ajay Khare on February 20, 2013 at 3:08pm

अत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक रचना. बहुत बहुत बधाई. ADARNIY VIJAY JI BAHUT KHUB 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2013 at 1:39pm

आदरणीय निकोरे जी, मुझे यह रचना पढ़ यह समझ नहीं आ रही की मेरे स्मृति पटल को 

आपने कैसे पढ़ लिया । यह तो साफ़ साफ़ मेरे अतर्मन के उदगार ही लग रहे है । खैर जो 
भी है आपके मन के ये भाव बेहद पसंद भी आये और संवेदना भी उभरी । हार्दिक आभार 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 20, 2013 at 12:20pm

अंतर्मन की बेबसी और पीड़ा जैसे बह निकली है शब्दों में और अपने प्रवाह के साथ बहाए ले जा रही है पाठक को अंत तक जहां वो भी इन शब्दों के दर्पण में अपने ही बिम्ब को अनुभव कर रहा है.

इस पीड़ाजन्य  मर्मस्पर्शी अंतर्भाव सम्प्रेषण के लिए बधाई नहीं कहूंगी.. 

सादर.

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 10:28pm

अत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक रचना. बहुत बहुत बधाई.

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 8:52pm

आदरणीय संदीप जी:

आपका हार्दिक आभार।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 8:42pm

आदरणीय अरुण जी:

 

यह कविता मेरी नहीं है, यह जिस किसी की भावनाओं को छू जाए,

उसी की है ... अत: आपकी अपनी है ... पर इसका दर्द आपको न

देना चाहूँगा। आप प्रसन्न रहें।

 

विजय निकोर

 

Comment by Aarti Sharma on February 19, 2013 at 8:42pm

प्रणाम विजय भाई..आपकी रचना पड़कर निशब्द हु...बेहतरीन पंक्तियों से संजोया है आपने कविता को..बधाई स्वीकारें ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
22 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service