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(प्रस्तुत रचना 'सार' छन्द पर आधारित है।इसके अनुसार छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्रायें होती हैं,16वीं तथा 12वीं मात्रा पर यति होती है।चरणान्त में दो गुरु अवश्य होने चाहिए।)

जीवन का आधार कहां है,आफत सिर पर भारी।
अपने में ही लिप्त घूमती,पागल दुनिया सारी॥
समय नहीं है पास किसी के,जीवन भागा दौड़ी।
प्यार-व्यार का रिश्ता झूठा,नफरत दरिया चौड़ी॥
कहां बची है वही मनुजता,मानव कहां पुराना।
और अधिक विकसित है दुनिया,मार्डन हुआ जमाना॥
वृद्धों का सम्मान कहां है,छूकर चरन नमस्ते।
हाय किये बाइक पर बैठे,पब या क्लब के रस्ते॥
दादा-दादी की परी-कथा,पोता कहे पुरानी।
साबू नागराज के आगे,फीकी सभी कहानी॥
परमाणू के हाथ सृष्टि है,यदि विस्फोट कहीं हो।
क्षणभर में सोने की नगरी,मिटकर धूल मिली हो॥
जीवन बंदूकों में बसता,प्राण समझ लो गोली।
किस गोली पर मौत लिखी हो,रब जाने या गोली॥
पैसा पैसा औ बस पैसा,पैसा सब पर भारी।
पैसे के खातिर सब करते,बिन अच्छा भला विचारी॥
ऐसा विकास इस दुनिया का,जाने कहां रुकेगा।
बम फूटे या धरती पलटे,ईश्वर रूप धरेगा॥

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 13, 2012 at 9:08am
डॉ.प्राची जी आपने रचना के भावों का अनुमोदन कर मेरे उत्साह को दोगुना किया है।उत्साहवर्द्धन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 13, 2012 at 9:05am
आदरणीया राजेशकुमारी प्रयास को सराहने हेतु हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2012 at 9:26pm

विन्ध्येश्वरी जी आज की परिस्थितियों में ढाल कर बहुत अच्छी रचना लिखी है बहुत बहुत बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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