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लघु कथा : हाथी के दांत 

बड़े बाबू आज अपेक्षाकृत कुछ जल्द ही कार्यालय आ गए और सभी सहकर्मियों को रामदीन दफ्तरी के असामयिक निधन की खबर सुना रहे थे. थोड़ी ही देर में सभी सहकर्मियों के साथ साहब के कक्ष में जाकर बड़े बाबू इस दुखद खबर की जानकारी देते है और शोक सभा आयोजित कर कार्यालय आज के लिए बंद करने की घोषणा हो जाती है | सभी कार्यालय कर्मी इस आसमयिक दुःख से व्यथित होकर अपने अपने घर चल पड़ते  है | बड़े बाबू दफ्तर से निकलते ही मोबाइल लगा कर पत्नी से कहते है "सुनो जी तैयार रहना मैं आ रहा हूँ, आज  सिनेमा देखने चलना है"

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Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 23, 2012 at 12:22pm

श्री वीनस जी, हम तो पहले से ही आपकी काबिलियत के कायल रहे हैं, और मेरे नव प्रयासों में आपके, श्री सौरभ जी के एवं अन्य तमाम लोगों के शिल्प  सम्बन्धी हस्तक्षेप का बड़ा महत्त्व रहा है. तो मुझे तो हमेशा ही आप लोगो की आलोचना का इंतज़ार रहेगा. धन्यवाद.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2012 at 12:10pm

सभी को नए  संवत्सर की शुभकामनायें ||

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 11:54am

प्रिय वीनस जी,

आपकी बातें अपनी जगह पर बिलकुल ठीक हैं| व्यक्ति का बड़प्पन इसी में है कि वह सामने वाले को उसके गुण और दोष के साथ समग्र रूप में स्वीकार कर ले| अक्सर परस्पर सम्वाद के अभाव में कुछ ग़लतफ़हमियां हो जाती हैं| जो हो चुका है उसे भुला कर आगे बढ़ना सबके लिए श्रेयस्कर होगा| विवादित प्रकरण का पटाक्षेप समझा जाए यही मेरी, आपकी और हर किसी की इच्छा है! नव संवत्सर की शुभकामनाओं समेत, :-)))))))))

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 11:46am

रवीन्द्र जी,
संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'

राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'

Dr. Shashibhushan
ANAND PRAVIN
अश्विनी कुमार
और ओ बी ओ मंच

सभी श्रेष्ठवर को सादर वन्दे
कल रात मैंने अपने आप पर काफी विचार कि और अपनी बातों पर भी 
मैं सोचता रहा कि मैं कहाँ ऐसा जयादा बोल गया कि आनंद जी को मुझे टोकने की नौबत आ गई ...

मैं अपनी कुछ कमियों के विषय में बात करना चाहता हूँ

१- मुझे हिन्दी सनातनी छंदों की कोंई जानकारी नहीं है न मैं छंद पर लिखना चाहता हूँ और मैं सीखने को उत्सुक भी नहीं हूँ,, जब कभी उत्सुकता हुई तो जरूर सीखूंगा
२- ग़ज़ल विधा को मैंने आत्मसात करने का असीम प्रयास किया है जिसमे तुच्छ सफलता प्राप्त हो सकी है
३ - मैं ग़ज़ल विधा को ले कर अत्यधिक अनुग्रही हूँ और यह मेरी बहुत बड़ी कमी है,, मैं चुप नहीं रह पाता,,, "वेट एंड वाच" की नीति का पालन मुझसे नहीं हो पाता
अभी कुछ दिन पहले कहानी कार असगर साहब से एक सूक्ति मिली है "जो समर्पित हैं वो तटस्थ नहीं रह सकते"
मेरे साथ यही बात है

जो लोग मुझे कुछ समय से जानते हैं वो लोग मुझे इस कमी के साथ स्वीकार किये हुए हैं यह इनका बड़प्पन है नए लोगों को यह व्यवहार अजीब लगा तो कुछ गलत नहीं लगा ...

मैं ग़ज़ल के शिल्प आदि पर उन लोगों से भी बहुत खुल कर बात करने लगता हूँ जिनसे बिलकुल अंजान हूँ,, ऐसे में बहुत बार कटु अनुभव भी हुए मगर मैं सुधर ही नहीं रहा

परन्तु अब मैं आ सभी को आश्वस्त करता हूँ कि आप सभी श्रेष्ठवर में जब तक कोंई शिल्प पर बात नहीं करना चाहेगा मैं स्वयं चर्चा नहीं करूँगा न ही आप लोगों की रचनाओं में शिल्पगत आधार पर कमेन्ट करूँगा
जिन्हें मेरी वजह से कुछ मानसिक कष्ट हुआ है उनसे क्षमा प्रार्थी हूँ

यहाँ इस पोस्ट में भी मैं अत्यधिक अनुग्रही हो गया था कि भाई आनंद जी इस लघु कथा को अतिलघु कथा क्यों कह रहे हैं, शिल्प पर मैंने बात नहीं की क्योकि मुझे इसकी कोंई जानकारी भी नहीं है

मुझे इस बात का भी दुःख हुआ की बाद में उनसे जब इस विषय में बात हुई तो इसके बाद रवीन्द्र जी ने इस चर्चा में यह कहीं नहीं कहा कि आनंद भाई यह अति लघुकथा नहीं लघु कथा ही है

श्रेष्ठवर रवीन्द्र जी आनंद जी से पूर्व परिचित हैं व आनंद उनका सम्मान भी करते हैं, यदि रवीन्द्र जी खुद रचना को चर्चा का केन्द्र बिंदु मानते तो बात बहुत पहले समाप्त हो जाती और शायद कोंई बात भी न होती 

बातें होती रहीं और मूल चर्चा "रचना आलोचना" कहीं पीछे छूट गई....

मैं पुनः आप सभी श्रेष्ठवारों से क्षमाप्रार्थी हूँ
निवेदन  है कि कृपया इस पोस्ट पर अब् बातों को विराम दे

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 11:39am

सम्मानित मंच एवं सदस्यों,

सभी प्रकार की शंकाओं व विषमताओं का निवारण हो चुका है और सबकुछ साफ़सुथरा दिखाई दे रहा है| मंच का स्वस्थ वातावरण बना रहे और हम सभी मेलजोल के साथ आगे बढ़ें इसी कामना के साथ| शुभकामनाएँ, :-)))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2012 at 10:05am

आदरणीय रवींद्रजी,  सादरवन्दे. 

आपकी सद्यः टिप्पणी ने न केवल सभी सदस्यों को आशान्वित किया है, बल्कि, आपके प्रति आदर का भाव भी संचारित किया है. अनावश्यक विन्दुओं को तरज़ीह देने का अतुकांत सिलसिला अवश्य ही समाप्त हो.  

आदरणीय शशिभूषण जी के उक्त भावना-विस्फोट से, सही कहें, आप ही नहीं सभी सदस्य, जिनने उक्त कहे को पढ़ा, समवेत चकित हुए थे.  कहाँ तो नये हस्ताक्षरों को उनके अनगढ़पन पर रास्ता बताया जाय, उसे सही तथ्यों के प्रति अगाह करवाया जाय, उसकी जगह उसकी ओट में अपनी ही भावनाओं को आहत हुए देखना विचित्र ही लगा था. 

आप उस नये गुट के पुरोधा हैं. आपकी ताक़ीद से बातें सँवरती लग रही हैं. हम रचनाकर्म और उसके स्तर को अपनी चर्चाओं का विन्दु बनायें.  अन्य सारी बातें अन्यथा ही हैं. 

आदरणीय रवींद्रजी,  ऐसा होता रहा है. जाने वाले कई-कई कारणों की ओट में चले जाते हैं, रुकने वाले समुच्चय में सारी बातें समझ रुकते हैं.  नये लोग जुड़ते हैं, सदस्य बनते हैं और इस चैतन्य-यज्ञ में अपनी क्षमतानुसार समिधा डाल यज्ञाग्नि की पवित्र धधक को बनाये रखते हैं.  हमने यही देखा और समझा है.  यहाँ का प्रज्ज्वलन विनाश हेतु नहीं, अंकुरण के पूर्व का है.

आपका आपकी सकारात्मक टिप्पणी के सापेक्ष पुनः सादर स्वागत करता हूँ और आपकी साहित्यिक क्षमता से इस मंच को लाभान्वित होने की कामना के साथ नमन करता हूँ.

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on March 22, 2012 at 11:26pm

जिंदगी के चार दिन हैं, जिंदगी हँस कर जियें.

मिल ग़ले, शिकवे भुला दें, आन हिन्दुस्तान की..

Comment by Er. Ambarish Srivastava on March 22, 2012 at 11:09pm

आदरणीय बागी जी ! आपकी यह लघुकथा आज के समाज में व्याप्त स्वार्थपरता का सटीक चित्रण कर रही है ! इस हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई मित्रवर ! जय ओ बी ओ !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2012 at 10:09pm

//कमेन्ट मिटाने के लिए सौरभ जी ने मुझसे नहीं कहा था मुझे एडमिन की ओर से भाषा को संतुलित रखने का निर्देश मिला था मुझे अतः मैंने उन कमेंट्स को हटा दिया जिनके पोस्ट होने के बाद मुझे ऐसा निर्देश मिला था| मेरी भैंस की बात वाली टिप्पणी उनमें से एक थी|  अतः मैंने उन्हें भी हटा दिया था| एक टिप्पणी जो सारे विवाद की जड़ बनी वो मेरा मेरे ब्लॉग पर लौटने से पहले ही किसी और द्वारा हटा दी गयी थी //

आदरणीय संदीपजी, वस्तुस्थिति को कुछ हद तक स्पष्ट करने के लिये आपका सादर धन्यवाद.

मैं समझता हूँ,  आदरणीय रवींद्र जी के मेरे प्रति बन आये संदेह का निवारण हुआ. कमेंट्स को हटाने की बात मैंने कभी नहीं की. आदरणीय संदीपजी, आपके उक्त थ्रेड पर मैं तो सबसे आखीर में आने और टिप्पणी करने वालों में से था. और तबतक टिप्पणियाँ हट चुकी थीं. इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि मुझ ख़ाकसार की आदरणीय संदीपजी से कोई मतमतान्तर वाली बात नहीं हुई थी.  वस्तुतः, मुझे आपकी उक्त रचना पर टिप्पणी देते समय ही भान हुआ था और मैंने इसका ज़िक्र भी किया था कि टिप्पणियों में तारतम्यता नहीं दीख रही है.  इसके बावज़ूद आदरणीय रवींद्र जी द्वारा मुझे इंगित करना मैं कतई नहीं समझ पाया.  अच्छा किया, आपने तथ्यों को स्पष्ट कर दिया. 

किन्तु, स्पष्टता हित हुए आपके वर्तमान प्रयास में हुए विलम्ब ने आदरणीय रवींद्र जी को देर तक भ्रम और आक्रोश में रखा. 

//यदि उसी भावावेश में कभी उससे कोई छोटी सी त्रुटि हो जाए तो उसे समझाना तो अवश्य चाहिए किन्तु भावनाओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है| उससे कोई ग़लती हो तो उसे विस्तारपूर्वक समझा कर उसकी ग़लती का एहसास कराना चाहिए और सुधार के रास्ते पर ले जाना चाहिए बल्कि यह नहीं कि उसके ऊपर इस तरह के व्यंग्यबाण छोड़े जाएँ कि वह आहत हो जाए| इतने लंबे घटनाक्रम में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जो नहीं होना चाहिए था किन्तु पिछली को बिसार कर आगे बढ़ जाने में ही भलाई होती है|//

किस नवागंतुक की बात कर रहे हैं आदरणीय संदीपजी ? यदि आप अपनी बात कर रहे हैं तो जो कुछ मैं जान पाया हूँ, उसमें आपसे चर्चा एक नवागंतुक ही कर रहे थे. जिन्होंने भी अपनी अपनी टिप्पणी हटा ली है.  फिर आपसे हुए उक्त प्रकरण को इस मंच की गतिविधियों का पर्याय समझ लेना उचित होता है क्या ?

परन्तु आप यदि नवागंतुक अनुज आनन्द की बात कर रहे हैं तो आप उन्हें समझ भरा आशीर्वाद दें. साहित्यकर्म मात्र संप्रेषण नहीं है. विशेषकर विधाओं पर अपने मंतव्य देना कमसेकम बेसिक जानकारी की अपेक्षा तो अवश्य करता है. उनके रचना-उर्वर मनस को वास्तव में तथ्यों और अध्ययन का संबल चाहिये. अन्यथा, उन्हें बार-बार साहित्यसमाज में बहुत कुछ सुनना होगा, जहाँ बाल हठ, आत्म-प्रवंचना या किसी का मानसिक सहयोग मात्र सहयोगी नहीं होते. साहित्यिक रास्ता स्वयं के दम पर ही तय करना होता है.

//इस प्रकरण में भी ऐसा ही कुछ हुआ है| जैसे मैं यहाँ के पुराने सदस्यों को नहीं जानता वैसे ही यहाँ के सदस्यगण मुझे भी नहीं जानते स्वाभाविक ही है| हर किसी की अपनी-अपनी ख़ूबी और ख़ामी होती है| कोई कहीं बीस है तो कोई कहीं| कोई किसी विधा में निष्णात हो जाए तो उसे गर्व होना चाहिए गुरुर नहीं //

संलग्नता और मानसिक निकटता परस्पर जानने-बूझने के कारण हुआ करती हैं. यह अवश्य है कि आप कुछ सदस्य एकसाथ इस मंच पर आये हैं. आप पुराने सदस्यों के प्रति मनस विकसित कर लेने के पूर्व इस मंच के वातवरण को समझने की कोशिश करें.  हम तथाकथित पुराने सदस्य आप सभी एकसाथ वाले सदस्यों को कुछ और निकटता से समझते यदि आपने सद्यः समाप्त आयोजन में हिस्सा लिया होता. खैर, एक और आयोजन आ रहा है. आप सभी का सहर्ष स्वागत है. यहाँ किसी को कोई गुरूर या गर्व नहीं है. क्योंकि सभी पुराने सदस्य एकदूसरे का विगत जानते हैं. विधाओं से अपरिचित होना किसी को कौतुक या हास्यास्पद नहीं बना देता. मैं मात्र एक या दो सदस्यों को छोड़ दूँ, जो सदा सक्रिय नहीं रहते, हम सभी (हाँ, सभी) मात्र कुछ महीनों पूर्व तक पद्य विधाओं में पूरी तरह ब्लैंक थे. यह इस मंच का सत्संग ही है कि सदस्य सनातनी छंदों और ग़ज़ल की विधा पर चर्चा कर लेते हैं. फिर गरूर किसे होने लगा !  आप बने रहिये, देखिये, क्या कुछ नहीं हो जाता !

आप हताश न हों, आदरणीय संदीपजी,  न हमें होने दें.  नत रह कर ही हम जानकार होते हैं. यह अवश्य है कि हर मंच की अपनी नियमावलियाँ और परिपाटियाँ होती हैं जिनका निर्वहन प्रत्येक सदस्य को करना होता है.  और, यह भी अवश्य है कि ओबीओ कोई सोशलसाइट या ’बना कर छोड़ दिया गया’ ब्लागसाइट एकदम से नहीं है.

सादर

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 22, 2012 at 9:00pm

वाहिद भाई, आनंद जी, आदरणीय शशि जी एवं श्री शाही जी, आप सभी लोग मेरे प्रिय हैं, और मंच या रचना से अलग हमारा एक रिश्ता है, और आप लोगो से स्नेह मिला है. आप लोगो को दुखी देख कर या मंच छोड़ के जाते हुए देखना कतई सुखद नहीं है. माना की हर मंच की अपनी परिपाटी होती है, किन्तु जिस प्रकार नए बच्चो को स्कूल में दाखिले के बाद कुछ दिन तारतम्य बिठाने में दिक्कत आती है, नव आगंतुको  को भी आती है, कृपया डंडा ले के प्रथम दिन से ही न अनुशासन सिखाने लग जाएँ. और कुछ भी पूर्ण नहीं है, और वक्त के साथ परिवर्तित होना लाजमी है. इसी प्रकार जो नव आगंतुक है वो भी अपनी धुन में ना रहें, पहले व्यवस्था समझ ले तब कोई कमेन्ट या निर्णय ले. वाहिद भाई पिछले मंच पर मै भी आपके साथ चला आया था, इस बार मै आपको इस मंच पर रोक रहा हूँ, कुछ सोच कर, यकीन मानिए, हमारी मौजूदगी से मंच पर रौनक रहेगी. धन्यवाद.

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