“यार बड़ी दिक्कत है आजकल.”
“क्यों क्या हुआ.”
“रोज़ धर्म और देश भक्ति को लेकर बवाल हुआ करता है.”
“जब कुछ करने को न हो तब ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें टाइम पास का अच्छा साधन होती हैं.”
“तुम्हारे कहने का मतलब जो कुछ भी आजकल हो रहा, सब टाइम पास है?”
“बिलकुल.”
“परसों जो लड़कों में मारपीट हुई, पुलिस ने लाठीचार्ज किया, मीडिया में बवाल मचा हुआ है, सब टाइम पास है?”
“बिलकुल है भाई. इसके अलावा इस बवाल का मतलब क्या है? तुम्हें कुछ सार्थकता दिखती है? नारे क्या देश प्रेम का पैमाना हैं?”
“यानी तुम्हारे कहने का अर्थ है कि जो देश विरोधी नारे लगा रहे हैं, वह सही कर रहे हैं.”
“नहीं, लेकिन क्या जो देश के समर्थन में नारे लगा रहे हैं, वह ही देशभक्त हैं? यही आज की बड़ी विसंगति है कि सब नारों में ही सिमट रहा है.”
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सिक्का अगर खोटा हो तो उसके दोनों पहलू खोटे होते हैं. इस बात की तस्दीक करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई, बृजेश भाई.
शुभातिशुभ
रचना अच्छी लगी, बधाई बृजेश जी
प्रतिभा पाण्डे जी आपका बहुत आभार
समर कबीर जी आपका हार्दिक आभार
नीलम उपाध्याय जी आभार आपका
आदरणीया बृजेश नीरज जी, बढ़िया समसामयिक रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।
जनाब बृजेश नीरज जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ तत्व अपने स्वार्थ के लिये मुद्दे गर्माये रखना चाहते हैं। सामयिक विषय लिये प्रभावशाली रचना। हार्दिक बधाई आपको
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