धूप, दीप, नैवेद बिन, आया तेरे द्वार
भाव-शब्द अर्पित करूँ, माता हो स्वीकार
उथला-छिछला ज्ञान यह, दंभ बढ़ाए रोज
कुंठाओं की अग्नि में, भस्म हुआ सब ओज
चलते-चलते हम कहाँ, पहुँच गए हैं आज
ऊसर सी धरती मिली, टूटे-बिखरे साज
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल
नयनों के संवाद पर, बढ़ा ह्रदय का नाद
अधरों पर अंकित हुआ, अधरों का अनुनाद
तेरे-मेरे प्रेम का, अजब रहा संयोग
नयनों ने गाथा रची, नयनन योग-वियोग
जटिल सभी अभिप्राय हैं, क्लिष्ट हुए सब शब्द
जड़ होती संवेदना, अवमूल्यन प्रत्यब्द
लहर-लहर हर भाव है, भँवर हुआ अब दंभ
विह्वल सा मन ढूँढता, रज-कण में वैदंभ
Comment
भावपूर्ण सुन्दर दोहों के लिए बधाई।
धूप, दीप, नैवेद बिन, आया तेरे द्वार
भाव-शब्द अर्पित करूँ, माता हो स्वीकार .. .. . वाह वाह !! न जानामि योगं जपं नैव पूजां का सुन्दर प्रयोग किया गया है इन पदों में...
उथला-छिछला ज्ञान यह, दंभ बढ़ाए रोज
कुंठाओं की अग्नि में, भस्म हुआ सब ओज .. . सही तथ्य आकार पा गया है. हार्दिक बधाई इस उच्च संप्रेषणीयता पर आदरणीय बृजेशजी.. .
चलते-चलते हम कहाँ, पहुँच गए हैं आज
ऊसर सी धरती मिली, टूटे-बिखरे साज.. .. . .. निवेदन हेतु कुछ विन्दु हैं यहाँ, परन्तु, अतिशय का स्वर अधिक मुखर है. समस्त पाठकों की भावनाएँ सम्माननीय हैं.
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल.. . .. .. अत्यंत सराहनीय प्रयास हुआ है, आदरणीय. अंतर्निहित भावों का विन्दुवत संप्रेषण वस्तुतः मुग्धकारी है. वैसे, प्रयुक्त बिम्ब-शब्दों के सापेक्ष काई का कदली शब्द स्वरूप कहीं अधिक सटीक होता. किन्तु, ऐसा करना अनिवार्य नहीं. किसी पाठक के मन में ऐसे शाब्दिक विचार आते रहते हैं.
नयनों के संवाद पर, बढ़ा ह्रदय का नाद.. .... .. आप तो अक्षरी के प्रति बहुत ही आग्रही रहे हैं. हृदय ही लिखा करें.
अधरों पर अंकित हुआ, अधरों का अनुनाद.. .. . वाह ! वाह !! वाह !!! .. यदि निवेदन करूँ, तो तुकान्तता का यही विन्दु प्रश्नों की सीमाओं में है. जिसकी चर्चा आप कर रहे हैं. इन छन्दों की भाषा ’चलताऊ’ नहीं है. अतः, आगे, आपको ही मान्य करना होगा. आदरणीय, आप एक विचार-समृद्ध संप्रेषक हैं.
तेरे-मेरे प्रेम का, अजब रहा संयोग
नयनों ने गाथा रची, नयनन योग-वियोग ... ....... . अरे वाह ! .. बहुत बढिया !!
जटिल सभी अभिप्राय हैं, क्लिष्ट हुए सब शब्द ... . कृपया प्रथम चरण अवश्य देख लें.
जड़ होती संवेदना, अवमूल्यन प्रत्यब्द ................इस अभिव्यक्ति पर सादर बधाइयाँ ! प्रत्यब्द शब्द का सटीक प्रयोग हुआ है !
लहर-लहर हर भाव है, भँवर हुआ अब दंभ
विह्वल सा मन ढूँढता, रज-कण में वैदंभ ................रज-कण में वैदम्भ ! वाह ! बहुत सुन्दर ! सर्वव्यापी विष्णुभाव को जिष्णुवत देखने का आग्रह उच्च मनोदशा का परिचायक है. वैसे तुकान्तता के आलोक में कहूँ, तो इस छन्द की भाषा भी अत्यंत संयमित और सुसंस्कृत है. अतः देख लेंगे.
इन सार्थक दोहों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय बृजेश जी.
ऐसे भाव-कथ्यों से पगी प्रस्तुतियों का सदा-सदा से स्वागत रहा है, और रहेगा.
सादर
अप सभी सुधी जनों का हार्दिक आभार! आप सभी के उत्साहवर्धन से बल मिला!
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल.................लाजवाब दोहे //// सादर बधाई
अच्छे दोहे हैं बृजेश जी। ये वाला विशेष
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल
दाद कुबूलें
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल///वाह वाह
जटिल सभी अभिप्राय हैं =१३ मात्रा ही है
आदरणीय भाई बृजेश जी इन अनुपम दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई। ………।सादर
सुन्दर और मन मुग्ध करते सार्थक दोहे रचने के लिए अत्शय बधाईयाँ श्री बृजेश नीरज जी
आदरणीय बृजेश नीरज जी,
अत्यंत सधे हुए दोहे, खड़ी बोली में, सारगर्भित और व्यापक अर्थ के साथ; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीय जवाहर जी आपका हार्दिक आभार!
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