For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ मैं नारी हूँ

हाँ मैं नारी हूँ

घर की मर्यादा हूँ,

प्रेम पूरित वादा हूँ

पिता का सम्मान हूँ

पति की इज्जत हूँ

रिश्तों की शान हूँ

 

सारी बंदिशें, तमाम वर्जनाएं

निर्धारित  हैं मेरे लिए

मेरे लिए ही सब 'कहना' है

मुझे ही सब कुछ 'सुनना'

विष मेरे लिए है

मैं मीरा बनूँ

पत्थर मेरे लिए 

तो मैं अहिल्या बनूँ

अग्नि परीक्षा देकर भी

घर से निकल सीता मैं बनूँ।

 

पर उस चिता  के बीच

घुटती फ़रियादों से अलग

भींचे होठों, रुंधे गले  से परे

बंदिशों, वर्जनाओं  के बीच

सम्हाला अपने अस्तित्व को

दुनियां ने जो बांधे मेरे पैरों में

परंपरा की जंजीरों को

कब तक मानूँ

नियति या संयोग को

 

तोड़ के हर पिंजरे को

उड़ान भरने निकल जाउंगी

दुनियां को दिखलाऊँगी

उम्मीद भरे परवाज से

आसमान में जगह बनाउंगी

हाँ मैं नारी हूँ

मुझे गर्व है मैं नारी हूँ।

मुझे गर्व है मैं नारी हूँ। 

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2019 at 8:50pm

आ. नीलम जी, सुंदर रचना हुयी है ।हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2019 at 5:27pm

आदरणीया नीलम जी, आपकी रचना का भाव-विन्यास और इसकी शाब्दिकता दोनों ध्यानाकृष्ट कर रही हैं. अत्यंत गहन मनोदशा की वैचारिकता साझा हुई है. नारी की परिस्थितियों को जिन शब्दों में उकेरा गया है उसका निर्वहन आगे भी होना था. दूसरा भाव-बंद तनिक और वर्णनात्मक होना था ताकि वह अंतिम बंद को तार्किक ढंग से सँभाल पाता. अपनी नारी सुलभ विसंगतियों के बखान बाद किस कारण से नारी होने पर गर्व का भान होने लगा ? इस बिन्दु पर भी तनिक सोचिएगा. 

बहरहाल, इस अनुपम अभिव्यक्तो पर हार्दिक बधाइयाँ. 

Comment by Neelam Upadhyaya on March 14, 2019 at 10:26am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on March 12, 2019 at 9:06am

मुहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,महिला दिवस पर बहुत उम्दा रचना पेश की आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 11, 2019 at 2:51pm

रचना को समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी

Comment by Hariom Shrivastava on March 11, 2019 at 10:42am

वाह,वाहह,बहुत सुंदर रचना। नारी ईश्वर की श्रष्टि रचना है,इसलिए नारी होने पर गर्व होना ही चाहिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service