For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७३ एक मज़ाहिया ग़ज़ल

2122 1122 1122 22/ 122

वह्म को खोल के हमने तो वहम कर डाला
जीभ थी ऐंठती, इस दर्द को कम कर डाला

बाज़ लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ को हज़म कर डाला
नर्म जो थी न सदा उसको नरम कर डाला

क़ह्र की छुट्टी करी सीधे कहर को लाकर
टेढ़े अलफ़ाज़ पे हमने ये सितम कर डाला

क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर डाला

बंदा पंजाबी था कहने लगा सुन ऐ पुत्तर
नज़्म को खींच कर हमने तो नज़म कर डाला

अब तो हम राज़ हैं मर्दुम नहीं, बस इक दुम हैं
मर के मर्दुम से हर्फ़े 'मर' को क़लम कर डाला

~राज़ नवादवी 

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

मर्दुम- मनुष्य, आदमी, सभ्य

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 29, 2018 at 11:45am

अच्छी ग़ज़ल राज़ साहब मजाहिया के साथ तंज भी खूब है दिल से दाद हाज़िर है 

Comment by राज़ नवादवी on November 26, 2018 at 10:59pm

आदरणीय तेज वीर सिंह साहब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया, , सादर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 26, 2018 at 8:46pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज़ नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर डाला

Comment by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 8:34pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और ज़र्रा नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 8:33pm

जनाब समर कबीर साहब, आपके रद्दे अमल और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 8:30pm

जनाब अनिस साहब, आपका हमेशा खैर मख्दम है. 

Comment by क़मर जौनपुरी on November 25, 2018 at 5:38pm

बहुत ख़ुशनुमा ग़ज़ल हुई है। जनाब राज़ साहब मुबारकबाद कबूल करें।

Comment by Samar kabeer on November 25, 2018 at 5:18pm

जनाब राज़ साहिब आदाब,अब क्या कहूँ जब आपने 'ख़त्म को ख़तम कर डाला',बधाई इस प्रस्तुति पर ।

Comment by Md. Anis arman on November 25, 2018 at 3:01pm

हा हा हा हा हा अच्छा जनाब मैं कुछ ज्यादा दिमाग खपा डाला था आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 2:41pm

आदरणीय अनिस साहब, ज़र्रानवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. ख़ुदा आपको इल्मो अदब की ऊँचाई तक ले जाए. ये ग़ज़ल अरूज़ और ज़ुबानी क़ायदे से जुड़ी बहस पे एक मज़ाहिया बयान है, कुछ ख़ास नहीं. मतले में ये कहा गया है कि अस्ल लफ्ज़ 'वह्म' के तलफ्फुज़ में जीभ ऐंठती है, इसलिए इसे सीधे सीधे 'वहम' बोल रहा हूँ. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्श के लिए आभार। तीसरे शेर पर…"
43 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service