For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७०

2122 1122 1122 22/ 112

सब्र रक्खो तो ज़रा हाल बयाँ होने तक
आग भी रहती है ख़ामोश धुआँ होने तक //१

समझेंगे आप भला क्यों ये गुमाँ होने तक
इश्क़ होता नहीं है दर्दे फुगाँ होने तक //२

तज्रिबा ये जो है सब आलमे सुग्रा का यहाँ
जाँ गुज़रती है सराबों से निहाँ होने तक //३

मुझको फ़िरदोस ने फिर से है निकाला बाहर
कौन है आलमे बाला में यहाँ होने तक //४

भारी पड़ती है रिहाई पे तमन्ना की कशिश
कौन आज़ाद हुआ दाम गिराँ होने तक //५

ख़्वाब देखे नहीं तो ख़्वाब की ताबीर क्या हो
तीर चलता ही नहीं दस्ते कमाँ होने तक //६

फ़र्द पाए न सुकूं ख़ुद में तो समझो कि वो फिर
ख़ाना बरदोश ही रहता है मकाँ होने तक //७

तौबा कर लूँ तेरी यादों के सिलसिले से मगर
हस्ती मिटती है कहाँ ख़ाके जहाँ होने तक //८

'राज़' मालूम है सबको तू नमाज़ी है नहीं
दो घड़ी बैठ तो ले नस्र-ए- अजाँ होने तक //९

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

दर्दे फुगाँ- आर्तनाद की पीड़ा; आलमे सुग्रा- मनुष्य का शरीर जिसमें सब कुछ है जो ब्रह्माण्ड में है; सराब- मृग-मरीचिका; निहाँ- छिपना, गुप्त होना; फ़िरदोस- स्वर्ग; आलमे बाला- परलोक; दाम- फंदा, पाश, बंधन; गिराँ- भारी, वज़नी; ब दस्ते कमाँ- हाथ में लिए धनुष के साथ; फ़र्द- एक अकेला व्यक्ति; ख़ाना बरदोश- खाना ब दोश; नस्र-ए- अजां- अज़ान की आवाज़ संचारित करना

Views: 667

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on November 24, 2018 at 9:23am

आदरणीय अजय तिवारी साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत से धन्य हुआ. हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Ajay Tiwari on November 22, 2018 at 7:45pm

आदरणीय राज़ साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

Comment by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 2:44pm

जी जनाब, इस अति उपयोगी जानकारी का हदय से आभार, सादर। 

Comment by Samar kabeer on November 19, 2018 at 1:55pm

2122 को 1122 करने की इजाज़त है ।

Comment by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 11:24am

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. कुछ संशय हैं जिसका समाधान करना चाहता हूँ. नीचे इसी बह्र में ग़ालिब के कुछ अशआर हैं जहाँ मात्राएँ गिराई या बढाई गईं हैं, मैंने बोल्ड करके चिह्नित किया है. कृपया अपनी इस्लाह देकर करम फरमाएं, सादर:

2122 1122 1122 22/ 112

 

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'

कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

 

सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मेरी क़ीमत ये है

कि रहे चश्म-ए-ख़रीदा पे एहसाँ मेरा

 

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग इलाज

शम्मा हर रँग में जलती है सहर होने तक

Comment by राज़ नवादवी on November 18, 2018 at 1:34pm

आदरणीय तेज वीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 18, 2018 at 12:24pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी। बहुत सुंदर गज़ल।

तौबा कर लूँ तेरी यादों के सिलसिले से मगर 
हस्ती मिटती है कहाँ ख़ाके जहाँ होने तक //८ 

'राज़' मालूम है सबको तू नमाज़ी है नहीं 
दो घड़ी बैठ तो ले नस्र-ए- अजाँ होने तक //९ 

Comment by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 11:38pm

जी जनाब, आपने जैसा फ़रमाया था, वैसी तरमीम मैंने कर दी है. सादर 

Comment by Samar kabeer on November 17, 2018 at 10:02pm

// तीर चलता नहीं ब दस्ते कमाँ होने तक" में क्या ब को बा करने से बात बनेगी//

नहीं बनेगी:-

'तीर चलता ही नहीं दस्त-ए-कमाँ होने तक'

Comment by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 3:10pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब, ग़ज़ल में शिरकत और इस्लाह का तहेदिल से शुक्रिया। जी जनाब, ज़ल्द बाज़ी में ये भूल हो गई।

"राज़ मालूम है सबको तू नमाज़ी है नहीं" इसे यूँ करने से बह्र ठीक हो जाती गई। 

" तीर चलता नहीं ब दस्ते कमाँ होने तक" में क्या ब को बा करने से बात बनेगी, कृपया मार्गदर्शन करें। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
3 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
13 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service