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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६९

2212 1212 2212 1212

ख़ुश्बू सी यूँ हवा में है, लगता वो आने वाला है
आबोहवा का हाल भी पिछले ज़माने वाला है //१

बाहों का तुम सहारा दो, तूफ़ान आने वाला है
दरिया तुम्हारे प्यार का सबको डुबाने वाला है ///२

बनते हो तीसमार खाँ, मेरी भी पर ज़रा सुनो
इक दिन ये वक़्त आईना तुमको दिखाने वाला है //३

मैं तो बड़े सुकून से सोया था तन्हा अपने घर
मुझको वफ़ा के खेल में तू ही तो लाने वाला है //४

है ये भिखारी आज का, कम है न मालदार से
कहते हैं सब उसे कि वो चिल्लर भुनाने वाला है //५

मैं भी ज़रा तो देख लूँ, तेरे लिए सुना बहुत
बाज़ीचा ए हयात में तू भी निशाने वाला है //६

थोड़ी तसल्ली तो रखो, होगा तुम्हे भी इल्म ये
जिसने किया गुनाह वो, नज़रें चुराने वाला है //७

जो है मुहाफ़िज़े अवाँ, उस का भी ख़ौफ़ कम नहीं
कहते हैं दूर ही रहो, जो भी है, थाने वाला है //८

छज्जे से फ़िर नया कोई चेहरा दिखा है राज़ को
कोठे से वो पतंग फिर हर दिन उड़ाने वाला है //९

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

बाज़ीचा ए हयात- जीवन रूपी खेल; मुहाफ़िज़े अवाँ- समय का प्रहरी

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Comment by राज़ नवादवी on November 18, 2018 at 1:32pm

आदरणीय तेज वीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 18, 2018 at 12:27pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी। बहुत सुंदर गज़ल।

बनते हो तीसमार खाँ, मेरी भी पर ज़रा सुनो 
इक दिन ये वक़्त आईना तुमको दिखाने वाला है //३ 

Comment by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 11:39pm

जनाब नरेन्द्र सिंह चौहान साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by narendrasinh chauhan on November 17, 2018 at 7:46pm

ख़ुश्बू सी यूँ हवा में है, लगता वो आने वाला है 
आबोहवा का हाल भी पिछले ज़माने वाला है 

बहोत खूब। 

सुन्दर रचना 

Comment by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 3:13pm

आदाब, मैं स्वयं नहीं समझ पाया। शायद सिस्टम में किसी वजह से मेरी पोस्ट उड़ गई थी, जनाब योगराज जी से फोन पे बात करने के बाद दुबारा पोस्ट की है। सादर। 

Comment by Samar kabeer on November 17, 2018 at 2:45pm

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