For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतर्द्वन्द्व

अंतर्द्वन्द्व

 

कितने बर्फ़ीले दर्द दिल में  छिपाए

किन-किन  बहानों  से  मन  को  बहलाए

भीतर  की गहरी गुफ़ा से  आकर

तुम्हारे सम्मुख आते ही हर बार

हँस देता हूँ ,  हँसता चला जाता हूँ

स्वयं को  छल-छल  ऐसे

तुमको  भी... छलता चला जाता हूँ 

 

ऐसे  में  मेरी हर हँसी में  तुम  भी

हँस देती हो ... नादान-सी

मेरे उस मुखौटे से अनभिज्ञ

न जानती  हो, न जानना चाह्ती  हो

कि अपने सुनसान अकेलों में

मैं वह नहीं हूँ  जो  हूँ  प्राय:

सामने  तुम्हारे

 

बिंधती गहरी कोई आंतरिक वेदना मेरी

घसीट ले जाती है मुझको

और छोड़ आती है  अविरल

उलझे विचारों के पहाड़ की उस चोटी पर

जहाँ वेदना की मटियाली धुंध में खड़े

किसी भी दिशा में अंतर्द्वन्द्व के धुंए के सिवा

कहीं कुछ और नहीं दीखता

 

वहाँ उस चोटी पर असहाय-सा खड़ा

दर्द करता है दर्द से दर्द की बातें

अनेक मानसिक अदृश्य सूत्रों में  तब  मैं

ढूँढ्ता हूँ उस “आनादि” दर्द का आदि और अंत

ठीक  उसी  समय  उस गहन आतंक में आतंकित

कांपती  रहती  है  मुझसे  ही  ठगी  मेरी  आस्था

कांपता  रहता है  भीतर  दुबक  कर  बैठा

मेरा  भोला  विश्वास

 

पर इस  अविरल अंतर्द्वन्द्व की बीच भी

तुम्हारे निश्छल स्नेह के  रमणीय  मनोहर

कोई  कोमल  कमल-फूल  रहते हैं विकसित

मेरी सूक्ष्मतम मानवीय सम्भावनायों को

वह रखते हैं सुगंधित

मेरी आस्था अब  और कांपती नहीं है

 

अलौकिक विश्वास के कंधे पर

स्नेह ले आता है वापस

मेरी आत्मा को तुम्हारी आत्मा के पास

और तुम्हारी उपस्थिति की महक में

हँसता हूँ  मैं, हँस देती हो  तुम

बच्चों-से  हँसते चले जाते हैं हम दोनो

              ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 816

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 11, 2018 at 1:32pm

आ. भाई समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on November 11, 2018 at 1:31pm

आ. भाई शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on November 11, 2018 at 1:28pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृज्रेश जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 9, 2018 at 10:11am

क्या खूब भाव पिरोये हैं आदरणीय कविता में...बधाई

Comment by vijay nikore on November 8, 2018 at 11:26pm

आदरणीय तस्दीक अहमद जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on November 8, 2018 at 11:25pm

आदरणीय राज़ नवादवी जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on November 8, 2018 at 11:24pm

आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on November 8, 2018 at 11:22pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on November 7, 2018 at 5:14pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत सुंदर प्रभावशाली और गनभीर रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपको दीपोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।

Comment by राज़ नवादवी on November 7, 2018 at 10:28am

आदरणीय विजय निकोरे जी, आदाब. अच्छी रचना हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
15 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service