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'अंधवायु में प्राणवायु' (लघुकथा)

कोई 'रोज़ी-रोटी' और 'नोटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था; तो कोई 'वोटों' और 'ओटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था। आम जनता जानती थी कि हर मुकाम पर कहीं न कहीं 'दाल में कुछ काला' है क्योंकि सालों से उसने सब कुछ देखाभाला है; अपने आपको वक़्त-व-वक़्त 'चोटों' से उबारा है। तरक़्क़ी के मुद्दों पर नेता व अधिकारी सब अपनी-अपनी वफ़ा की सफाई पेश कर दूसरों पर छींटाकशी कर, अपनी ही जगहंसाई कर चिल्ला रहे थे; विरोधी बिलबिला रहे थे!
"ये डील नहीं .. मतलबियों को ढील है! .. राजनीति नहीं .. चील है! चीट है ... ढीठ है, बस ढीठ है!"
"ये व्यापार नहीं .. भ्रष्टाचार है ... व्याभिचार है ग़रीब जनता, संस्कृति और संस्कारों के साथ! धर्म-निरपेक्ष जनतंत्र के साथ!
"लोकतंत्र नहीं... यह तो तानाशाही है! .. हर उद्योगपति ही शाही है! दूजी ग़ुलामी की आगाही है!"
आम जनता अपने अंदर तनिक 'शक्ति' और 'जागरूकता' के संचार होने पर बस इतना ही बोल पा रही थी सड़कों पर, धरनों पर, नये थोपे गए क़ानूनों पर, घोषणाओं और योजनाओं पर!
"कान बंद कर लो, बोलने वालों को बोलने दो! इनको जान सको, तो जान लो! ..अब तो अपनी अक़्ल से काम लो! अंधवायु में ईमानदार मतदान से लोकतंत्र को प्राणवायु दो, बस!" भीड़ में से एक बुज़ुर्ग ने ज़ोर से चिल्लाकर कहा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:21pm

ये ढील नहीं , घेरे में और और लोगों को बाँध लेने की कोशिश है , उसके बाद , समय हो जाने पर कसने की कवायद होती है।
जाएगा कहाँ ? की स्थिति है , उन्हीं के लिए लाभप्रद।
बहुत सारगर्भित लघु ( बोध ) कथा ,
बधाई आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:14pm

आदरणीय शेख  शहज़ाद उस्मानी जी ,बहुत बढ़िया  लघुकथा हुई है।  इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2018 at 11:01am

मेरी इस रचना पर समय देकर प्रोत्साहक टिपप्णियों द्वारा अनुमोदन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब प्रदीप देवीशरण भट्ट

साहिब, जनाब समर कबीर साहिब और जनाब  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  साहिब और जनाब तेेेजवीर सिंह साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 7, 2018 at 10:33am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन कटाक्ष युक्त बढ़िया लघुकथा।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 7, 2018 at 5:28am

आ. भाई शेख शहजाद जी,अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधायी।

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 5:26pm

//बहुत खूब //

जनाब प्रदीप भट्ट साहिब,इतनी छोटी टिप्पणी सोशल मीडिया पर देने का रिवाज हो सकता है,ये इस मंच की परिपाटी नहीं है,चूँकि ये सीखने सिखाने का मंच है, इसलिये यहाँ पहले रचनाकार को आदर पूर्वक सम्बोधित करते हैं फिर उसकी रचना की आलोचना या तारीफ़ की जाती है,उम्मीद है आप इस परिपाटी में सहयोग करेंगे,यही आपसे निवेदन है ।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 6, 2018 at 12:38pm

बहुत खूब 

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 12:33pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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