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ग़ज़ल -हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आद ; रदीफ़ :नहीं

बहर : २१२२  २१२२  २१२२  २२(११२)

हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं

बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |

“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा

है नई बोतल, सुरा में तो ईजाद नहीं |

भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने

द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |

देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी

किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |

लूटने का मामला है, लूटते सब नेता

दीखते ये नेक पर ये, कोई’ अपबाद नहीं |

चोंच से चुगकर सभी खाए परिंदे जैसे

सब गए छुट्टी बिताने कोई सैय्याद नहीं |

प्रेम आँगन में बहारें आती’ थी बिन मधुमास

अब सनम वो प्यार का जागीर आबाद नहीं |

जुमले’ बाजी में मज़ा आता था’ पहले पहले

किन्तु अब तो सब पुराने जुमले’ में शाद नहीं |

करलो’ जितने चाहे’ झूठे वादे’ सब करते हैं

ये चुनावी खेल में कोई भी’ तो बा’द नहीं |

जन्म हिन्दुस्तान, पाकिस्तान की गाते गीत

देश द्रोही जो है’ ‘काली’ बैध औलाद नहीं |

शब्दार्थ :

बेदाद : अत्याचार ; ईजाद =नयापन

सैय्याद = चिड़ीमार, व्याध,

शाद =ख़ुशी , बा’द=पीछे

मौलिक व अप्रकाशित  

 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2018 at 3:49pm

प्रयास के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 15, 2018 at 7:39pm

आ सुरेन्द्र नाथ सिंह जी , ग़ज़ल पर शिरकत करने केलिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 6:28am

आद0 कालीपद प्रसाद जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास हुआ है, तथापि ग़ज़ल सा उतना सटीक बन नहीं पाया है। आपको इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई। सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 14, 2018 at 7:58pm

इस ग़ज़ल में कहाँ कहाँ शिल्प एवं व्याकरण की गलती है , इशारे करदेते तो मुझे सुधरने में आसानी होतो आदरणीय |मैं ९९% हिंदी शब्द का प्रयोग करता हूँ | अक्सर काफिया शब्द ही उर्दू के चयनित शब्द होते हैं |सादर आदाब 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 14, 2018 at 7:37pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब | भाषा शिल्प व्याकरण के लिए मझे  किन किन शायरों को पढना चाहिए |उनकी कोई विशेष शायरी की किताब हो तो कृपया बताएं |सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 14, 2018 at 7:31pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ,आदाब ,हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |सादर 

Comment by Samar kabeer on January 14, 2018 at 5:26pm

जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है,भाषा,शिल्प,व्याकरण पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है,और इसके लिए आपको पुराने शायरों का कलाम बहुत पढ़ना होगा ।

Comment by Mohammed Arif on January 14, 2018 at 10:31am

आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब,

                       बहुत अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र बढ़िया । कुछ शे'र सामयिक भी हैं और ग़ज़लों में ऐसा होना नितांत आवश्यक है जिससे ग़ज़ल में ताज़गी बनी रहती है । सामयिकता का पुट आवश्यक है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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