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चीख रही माँ बहने तेरी -क्यों आतंक मचाता है

क्यों मरते हो हे ! आतंकी

कीट पतंगों के मानिंद

हत्यारे तुम-हमे बुलाते

जागें प्रहरी नहीं है नींद

==============

उधर काटता केक वो बैठा

ड्राई फ्रूट चबाता है

घोर निशा में सर्द बर्फ  हिम

कब्र तेरी बनवाता है

===================

आतातायी ब्रेनवाश  कर

नित नए जिहाद सिखाता है

'मूरख' ना बन तू भी मानव

कभी सोच रे ! क्या तू दानव ?

===================

मार-काट नित खून बहाना

कुत्तों सा निज खून चूसना -

खुश होना  फिर- कौन मूर्ख सिखलाता है

नाली के कीड़े सा जीवन क्या 'आजादी' गाता  है

==============================

 

कितनी आशाएं सपने लेकर

माँ ने तेरी तुझको पाला

क्रूर , जेहादी भक्षक बनकर

बिलखाया ले छीन निवाला

=================

'स्वर्ग' सरीखा अपना भारत
'देव' तुल्य जन-गण-मन बसता   
प्रेम पगी धरती 'फिर' स्वागत
'मानव' बन तू 'फिर' आ सकता
======================
चीख रही माँ बहने तेरी
'आ लौट ' गुहार लगाती हैं
'काल' यहां नित अब मंडराता
'कब्र खोद ' थक जाती हैं
=====================

एक बार फिर फिरकर आ जा

माँ को अपने गले लगा ले

हिंसा बंदूके बम छोड़े

‘प्रेम की गंगा’ यहां समा जा

=================

माँ तेरी नित-नित घुट मरती

रिश्ते नाते तार -तार हो लिए कफ़न सब रोते हैं

घायल की गति तू क्या जाने

टीस-दर्द का 'विष' प्याला भर पीते हैं

==========================

मै माँ तेरी वो उसकी माँ ऐसे-वैसे

सब 'अपने' - भाई के रिश्ते

गोलीबारी -पत्थरबाजी मरते अपने

लिए कफ़न ताबूत खड़े वे बने फ़रिश्ते

=========================

कुछ मासूमों की आँखों में

ख्वाब तैरते कैसा भाई -बाप कहाँ ?

'लव' जेहाद फंस कुछ बालाएं

जूझ रहीं ना घर दिखता ना घाट यहां

==========================

बैठ कभी जंगल हिम में ही

तनहाई जब तू पाए

सोच ज़रा पल नयी दिशा दे

मार-काट तज घर आये

=================

गलियां चौबारे बचपन कुछ

मित्र मण्डली याद करो

क्या करने जग आया प्यारे ?

गोदी माँ  ‘कुछ’  याद करो

====================

माँ की आँखों में जादू है

बड़ी शक्ति है मन्नत दुआ की  खान यही

भटक गया बेकाबू तो क्या

अब भी तुझे बचा लेगी

===================

"मौलिक व अप्रकाशित"

सुरेंद्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५

६-७.३० पूर्वाह्न

जम्मू और कश्मीर

२५ नवम्बर २०१७

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2017 at 10:58pm
कोटि कोटि बधाई ।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2017 at 3:07pm
जनाब सुरेन्द्र कुमार शुक्ला"भ्रमर"जी आदाब,उम्दा प्रस्तुति,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 25, 2017 at 4:42pm

मनोज जी धन्यवाद आप का इस सामयिक रचना पर  आपका समर्थन मिला ख़ुशी  हुयी आभार 

Comment by Manoj kumar shrivastava on November 25, 2017 at 4:28pm
आदरणीय शुक्ल जी, इस भावपूर्ण रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 25, 2017 at 4:02pm

आरिफ भाई आदाब आप की  त्वरित और प्यारी प्रतिक्रिया मिली रचना बेहतरीन लगी मन खुश हुआ बुराई तो सब के लिए बुरी ही है भाई चाहे वो आप हों या हम नेता या अभिनेता राजनीतिज्ञ या लेखक , आइये अपनी कोशिश जारी रहे अमन चैन के लिए बहुत बहस सुनते होंगे आप भी और हम भी मीडिया में एक विशेष वर्ग के बारे में  राष्ट्र और राष्ट्रीय धारा   के बारे में   ,  लेकिन सब  सच नहीं होता आइये अच्छाई के लिए प्रयास करें  -भ्रमर ५ 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 25, 2017 at 3:50pm

शहजाद उस्मानी भाई आदाब। .ये सामयिक रचना आप के मन को छू सकी सुन मन हर्षित हुआ आइये हम सब सदा अमन चैन की कोशिश में लगे रहें जितनी संख्या अच्छे लोगों की बढ़ पाए तो शायद कुछ काम आये। पता लिखना आवश्यक नहीं ठीक कहा आप ने। सुरक्षित तरीका भी है ,लेकिन एक आदत थी कविता कब कहाँ जन्मी लिखने की। ...

भ्रमर ५      

Comment by Mohammed Arif on November 25, 2017 at 2:45pm
आदरणीय सुरेंद्र कुमार शुक्ल जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन और सामयिक रचनाएँ हैं । हर बुराई का अंत होना मानव के हित में है भाई मगर जो आतंक की आड़ में राजनेता रात-दिन ऊल-जलूल ब्यानबाज़ी करके एक वर्ग विशेष को राष्ट्रीय धारा से वंचित करने का काम कर रहे हैं उन दुष्टों पर भी लगाम लगाना ज़रूरी है । इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2017 at 12:33pm
देश के रक्षक और भक्षकों/आतंकियों पर बेहतरीन विचारोत्तेजक भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' जी। (अंत में पता वगैरह लिखना आवश्यक नहीं है।)

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