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22 22 22 2
दीप जले, आभा निखरे
हर्षित हो जन- मन मचले।

नेह-निरूपित सुप्त मृदा
ज्योतित करती नेह पिए।

बिखरें किरणें,भेद कहाँ?
जलते हैं अनिमेष दिये।

कौन नियामित कर सकता?
ज्योति-कलश के कौन ठिये।

आज उझकती रश्मि रथी
किसने उसको पंख दिये?
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on October 20, 2017 at 6:57pm
आदरणीय आरिफ भाई ,आपका शुक्रिया।
Comment by Mohammed Arif on October 20, 2017 at 6:11pm
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,बहुत ही सुंदर ग़ज़ल की सौग़ात । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Manan Kumar singh on October 19, 2017 at 7:10pm
आदरणीय अजय जी,आभार एवं दीप पर्व की हार्दिक बधाइयाँ।
Comment by Manan Kumar singh on October 19, 2017 at 7:09pm
आदरणीय समर साहिब,शुक्रिया व दीप-पर्व की शुभकामनाएँ।
Comment by Ajay Tiwari on October 19, 2017 at 6:59pm

आदरणीय मनन कुमार जी, 

अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाईयाँ.

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर

Comment by Samar kabeer on October 19, 2017 at 5:38pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
आपको दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
Comment by Manan Kumar singh on October 19, 2017 at 5:22pm
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय उस्मानीजी,शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 3:50pm
बहुत बढ़िया हिन्दी ग़ज़ल के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। दीपोत्सव पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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