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ग़ज़ल: जिन्दगी में न वन्दगी आई

जिन्दगी में न वन्दगी आई
देख सब से बड़ी ये रुसवाई
राम अल्लाह सच गुरु नानक
बात यीशू ने सच की बतलाई
आखरी वक्त काम आएँगे
सीख रिश्तों की थोड़ी तुरपाई
साथ माँ बाप के नहीं रहता
जिन्दगी कैसे मोड पर लाई
भेष में साधू के छुपा रावण
भेद सीता कहाँ समझ पाई
अब भरोसा करें बात किस पर
यार जिगरी हुआ है हरजाई
काश “तन्हा” मिले पता उसका
फिर बजेगी खुशी की शेहनाई

 मौलिक व अप्रकाशित 

मुनीश "तन्हा" नादौन 

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Comment

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Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 9:21pm
जनाब मुनीष तन्हा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के ऊला मिसरे में 'वन्दगी' को "बन्दगी" कर लें ।
'अब भरोसा करें बात किस पर'
इस मिसरे में टंकण त्रुटि के कारण 'बता'की जगह "बात"होने से मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,द्यरूस्त कर लें ।
मक़्ते में 'शेहनाई' को "शहनाई" कर लें ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 16, 2017 at 3:22pm
छटे शेर का ऊला मिसरा,,
Comment by Afroz 'sahr' on October 16, 2017 at 3:19pm
आदरणीय मुनीष जी इस सुंदर रचना के लिए आपको बहुत मुबारकबाद छटे शेर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है।
"बात यीशू ने सच की बतलाई" में "सच की" जगह "सच ही" करलें तो ज़ियादा बेहतर होगा सादर,,,
Comment by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 1:49pm
आ. मुनीश "तन्हा" नादौन,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.

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