For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन हमको बुद्ध का , देता है सन्देश |
रक्षा करना जीव की , दूर रहेगा क्लेश ||1||

भोग विलास व नारियां, बदल न पाई चाल |
योग बना था संत का, छोड़ दिया जंजाल ||2||

मन वीणा के तार को, कसना तनिक सहेज |
ढीले से हो बेसुरा , अधिक कसे निस्तेज ||3||

बंधन माया मोह का , जकड़े रहता पाँव |
जिस जिसने छोड़ा इसे , बसे ईश के गाँव ||4||

धन्य भूमि है देश की, जन्मे संत महान |
ज्ञान दीप से जगत का,हरे सकल अज्ञान ||5||

.
(मौलिक अप्रकाशित) 

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Chhaya Shukla on May 15, 2017 at 7:59pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी दोहों की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ! सादर नमन स्वीकारें !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 9:39am

आदरणीया छाया जी अच्छे दोहे रचे हैं आपने , बधाइयाँ स्वीकार करें

Comment by Chhaya Shukla on May 12, 2017 at 2:52pm

आदरणीय anurag vashishth ji आदरणीय समर साहब आप दोनों का मूल्यवान जानकारी के लिए हार्दिक आभार !
सराहना के लिए धन्यवाद सादर |
कृपया इसी प्रकार मार्ग दर्शन करते रहें |
सादर 

Comment by Chhaya Shukla on May 11, 2017 at 8:41pm
आदरणीय समर कबीर सर दोहों की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जीव शब्द पुल्लिंग है इसलिए जीव का ही होगा सर। सादर
Comment by Samar kabeer on May 11, 2017 at 6:10pm
मोहतरम छाया शुक्ला जी आदाब,बहुत अच्छे लगे आपके दोहे,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
'रक्षा करना जीव का' या
'रक्षा करना जीव की' ?
Comment by Chhaya Shukla on May 11, 2017 at 11:21am

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आपके स्नेह और दोहों की प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार |
नमन स्वीकारें ! 

Comment by Chhaya Shukla on May 11, 2017 at 11:19am

आदरणीय mohammed arif ji दोहों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार |
सादर नमन ! 

Comment by Mohammed Arif on May 11, 2017 at 8:07am
आदरणीया छाया शुक्ला जी आदाब, संदेशप्रद दोहे । ढेरों बधाईयाँ स्वीकार करें ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 9:02pm

सुंदर सन्देशपरक  दोहे, बहुत बहुत बधाई आदरणीय छाया शुक्ला जी , 

मन वीणा के तार को कसना तनिक सहेज, वाह अनुपम 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
42 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
46 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service