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आदरनीय नवीन भाई , खूबसूरत गज़ल के लिये बधाइयाँ आपको । आ,रवि भाई की बातों का ख्याल कीजियेगा । -- कुछ सलाह है .. सही लगे तो स्वीकार करें ...
इक जख़्म पुराना था फिर जख़्म नया दोगे ---- इक जख़्म पुराना है इक और नया दोगे
इक आग बुझाने में इक आग लगा दोगे ।। - इक आग बुझाओगे इक आग लगा दोगे ।।
अश्कों की इमारत को लहजों में छुपा दोगे । -- अश्कों की इबारत को लहजों में छुपा दोगे ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें
चौथे श्ोर मे तकाबुले रदीफ हो गया है और छठे शेर में शायद मजमून की जगह मजबून टाईप हो गया है देख लीजियेगा ।सादर
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