For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सच ,लगने लगा पराया ...

सच ,लगने लगा पराया ...

न मेरा
आना झूठ था
न तेरा
जाना झूठ था
दूर जाने का मुझसे
बस बहाना
झूठ था

जीती रही
जिस शब् को
हकीकत मानकर
सहर की शरर पे सोया
वो
अफ़साना झूठ था

बादे सबा
में लिपटी
सदायें
यूँ तो आयी थीं
तेरे बाम से मगर
उसमें छुपा
हिज़्रे ग़म को
बहलाने का
तराना झूठ था

इक झूठ
तूने जिया
इक झूठ
मैंने जिया
न सच
तुझे भाया
न सच 
मैंने अपनाया
कैसी की
तूने मुहब्बत
झूठ
बन गया सच
और सच
लगने लगा पराया

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 669

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2017 at 2:04pm

आदरणीय Mohammed Arif  जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Mohammed Arif on January 10, 2017 at 9:47am
आदरणीय सुशील सरनाजी आदाब, सुंदर भावों का अंकन करने वाली कविता के लिए बधाई ! सादर ।
Comment by Sushil Sarna on January 9, 2017 at 1:10pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 5:28pm
बहुत ही सुन्दर और सशक्त कविता हुई
Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:29pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से शोभित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:28pm

आदरणीय आशुतोष जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:28pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपके द्वारा बताई गयी टंकण एवम तकनीकी त्रुटि को दुरुस्त कर मैं इसे पुनः पोस्ट कर रहा हूँ। आपने जिस स्नेह से सृजन को संवारा है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। मेरा सृजन आपके मार्गदर्शन का सदैव आभारी रहेगा। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2017 at 12:02am

आदरणीय सुशील सरना सर, आपने झूठ शब्द के इर्द गिर्द बिम्ब आधारित बढ़िया कविता लिखी है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 7, 2017 at 5:08pm
आदरणीय सरना जी इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Samar kabeer on January 7, 2017 at 3:19pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,एक शब्द को बुनियाद बनाकर अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।'जीती रही
जिस शब को
को हक़ीक़त मान कर'
'को को'की तकरार भली नहीं लगती ।
18वीं पंक्ति में "बाम"शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
6 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
15 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
23 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
33 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
13 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service