For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222 1222

तेरे जलवे से वाकिफ हूँ तेरा दीदार करता हूँ ।
मुहब्बत मैं तुझे सज़दा यहां सौ बार करता हूँ ।।

नज़र बहकी फिजाओं में अदाएं भी हुई कमसिन ।
बड़ी मशहूर हस्ती हो नया इकरार करता हूँ ।।

न जाने कौन सी मिट्टी खुदा ने फिर तराशा है ।
है कारीगर बड़ा बेहतर बहुत ऐतबार करता हूँ ।।

नई आबो हवा में वो कली खिल जायेगी यारों ।
गुलाबी रोशनाई से लिखा रुख़सार करता हूँ ।।

यहां बेदर्द ख्वाहिश है वहां कातिल निगाहें हैं ।
बड़ी शिद्दत से मैं दिल में दफ़न हर खार करता हूँ ।।

जमाने में रकीबों ने बड़ी कीमत लगा दी है ।
है नीलामी का ये मंजर नया व्यापार करता हूँ ।।

कोई तश्वीर है धुँधली , है जिंदाबाद ये कोशिश ।
अधूरे अक्स को लेकर उसे साकार करता हूँ ।।

तमन्ना रूठ मत जाए तेरे कूचे में दाखिल है ।
शिक़ायत वक्त करता है उसे बेकार करता हूँ ।।

बहुत नजदीक से गुज़री है तेरे हुस्न की खुशबू ।
हवाओं की अदावत से ज़िगर लाचार करता हूँ ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2016 at 3:44pm

आ० राजेश कुमारी जी से सहमत 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 15, 2016 at 11:01pm
आ0 राजेश कुमारी जी सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 15, 2016 at 11:00pm
आ0 कबीर सर सादर आभार मैं निर्देशित पंक्तियों को ठीक करता हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 15, 2016 at 9:24pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० नवीन मणि जी दिल से बधाई लीजिये आद० समर भाई जी की बात पर गौर करें थोड़े बदलाव के बाद जिंदाबाद ग़ज़ल होकर निकलेगी वो आपके लिए मुश्किल काम नहीं है 

Comment by Samar kabeer on November 15, 2016 at 5:33pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,इसके लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
ग़ज़ल अभी और समय चाहती है,तीसरा शैर रवानी,बयान की वजह से बहुत कमज़ोर हे,और सानी मिसरा लय में नहीं है,क़ाफ़िया की वजह से ।
चौथा शैर भी बहुत कमज़ोर है'रुख़सार करता हूँ'क्या बात हुई?मफ़हूम साफ़ नहीं है ।
पांचवें शैर का सानी मिसरा यूँ करें:-
"बड़ी शिद्दत से दिल में दफ़्न मैं हर खार करता हूँ",सही शब्द है"दफ़्न"।
सातवें शैर में 'तश्वीर'को "तस्वीर" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service