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ग़ज़ल : लौट कर जब शाम को मैं घर गया

2122   2122  212

 

लौट कर जब शाम को मैं घर गया ,

निस्‍फ़ दफ़्तर  साथ में लेकर गया ।

 

आंख में देखी थकानों की नदी,

डूब कर उत्‍साह घर का मर गया ।

 

खेंच लो तुम भी तनाबें नींद की ,

चाँद खिड़की से हमें कह कर गया ।

 

बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,

ध्‍यान भी उस बात पर अक्‍सर गया ।

 

जब गया तो वो सिंकदर या सखी ,

शान शौकत सब यहीं पर धर गया ।

 

क्‍या बताएं वक्‍़त की मज़बूरियां ,

पीठ पीछे वार छुप के कर गया ।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on November 3, 2015 at 6:37pm

ग़ज़ल रवां हुई है और ख़याल भी बखूबी निखरे हैं . बधाई आदरणीय !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2015 at 6:45pm

आदरणीय रवि भाई , खूब अच्छी गज़ल हुई है , मतला बहुत सुन्दर कहा है ! दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ॥

आंख में देखी थकानों की नदी,------------ आँखों मे देखी थकानों की नदी  --  कहें तो ज़ियादा सही लगेगा

इस शे र में कहन की गड़बड़ी है , इसे यूँ कह लें --

बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,   -------------------   भूल जाना चाहता था बात जो  --- या -  था मै जिसे

ध्‍यान भी उस बात पर अक्‍सर गया ।  ----------   ध्यान मेरा बस वहीं अक्सर गया

Comment by Ravi Shukla on October 15, 2015 at 5:30pm

आप सभी आदरणीय मित्रों  का बहुत बहुत आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:00pm

आदरणीय रवि जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

आंख में देखी थकानों की नदी,

डूब कर उत्‍साह घर का मर गया ।................... थकानों की नदी............ बढ़िया प्रयोग 

 

खेंच लो तुम भी तनाबें नींद की ,

चाँद खिड़की से हमें कह कर गया ।................. बहुत खूब..... तनाबें नींद की.... बहुत शानदार 

 

बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,

ध्‍यान भी उस बात पर अक्‍सर गया ।............. हासिल-ए-ग़ज़ल 

दाद दाद दाद 

 

Comment by Jayprakash Mishra on October 4, 2015 at 6:37pm
Nishchit hi umda gazal
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 11:30am

बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,

ध्‍यान भी उस बात पर अक्‍सर गया ।

आ० रवि जी! बहुत ख़ूब गज़ल हुयी है! हार्दिक बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 11:00am

आदरणीय रवि जी ..इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

Comment by दिनेश कुमार on September 29, 2015 at 8:20pm
बहुत ख़ूब आदरणीय। वाह वाह। क्या ग़ज़ल हुई है। हर शे'र तारीफ़ के काबिल। वाह
Comment by Meenakshi Sukumaran on September 29, 2015 at 1:39pm

behad khoobsurat

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 29, 2015 at 10:18am
आदरणीय रवि जी,बहुत सुन्दर ग़ज़ल कहे हैं, बधाई स्वीकारें..!!

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