तुम
मेरी प्रतीक्षा करना
उस मोड़ पर
मुड जाता है जो
मेरे घर की ओर
मैं दौड़ कर पहुचुंगा
तब भी
जबकि मैं जानता हूँ
सड़क भी अब
मुझसे तेज दौड़ती है !!
मेरी आवाज़ सुन लेना
ग़र मैं पुकार न सकूं
मेरा दर्द महसूस करना
ग़र मैं कराह न सकूं !!
मैं इतना साहसी नहीं
छीन सकूं दुनिया से तुम्हें
इतना कमजोर भी नहीं
की विद्रोह न कर सकूं
तुम्हे पाने के लिए
तुम
मेरी प्रतीक्षा करना
उस मोड़ पर
मुड जाता है जो
मेरे घर की ओर
मैं दौड़ कर पहुचुंगा
तब भी
जबकि मैं जानता हूँ
सड़क भी अब
मुझसे तेज दौड़ती है !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी !
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ...बधाई आपको हरिप्रकाश जी .
आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ।
बेहतरीन आदरणीय दुबे जी
सड़क भले आपसे तेज दौडती है पर् रेस में कछुआ बाजी मार गया i
आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सुनील जी ।
आदरणीय श्री सुशील सरना जीआपका हार्दिक आभार ।
बहुत ही सुंदर मनोभावों की रचना …हार्दिक बधाई आदरणीय
आदरणीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार ,प्रणाम ।
इस अच्छी रचना के लिए बधाई
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