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भविष्य (लघुकथा)

महज 12 वर्ष की कच्ची उम्र मेँ ही परिस्थितियोँ मेँ ढल गया था वो। जिस उम्र मेँ बच्चोँ को खेल खिलौनोँ सैर सपाटोँ का शौक होता है उस उम्र मेँ मोहन को बस एक ही शौक था- पढ़ने का। पढ़ाई मेँ तेज मोहन बड़ा ही महत्वाकांक्षी बालक था। लेकिन वक्त की ये टेढी-मेढी गलियाँ कब, किसे, ज़िन्दगी का कौन सा मोड़ दिखा देँ कौन जाने ? ऐसी ही किसी गली के मोड़ पर मोहन ने वो गरीबी देखी जिसमेँ दो जून का भोजन भी मुश्किल होता था और स्कूल तो दूर-दूर तक दिखाई न पड़ता था। पर मोहन भला कैसे हार मानता ? उसे तो बड़ा आदमी बनना था। इस सुखद स्वपन के एहसास से ही वो रोमांचित हो जाता था। उसने काम करने का फैसला किया।

जहाँ चाह वहाँ राह। जल्दी ही उसे एक कारखाने मेँ अपने लायक काम मिल गया। हालांकि वेतन काफी कम था पर उसके नन्हे पंखोँ को उड़ान देने के लिए काफी था। आज उसे अपने हिस्से का आकाश मिल गया था। उसके हृदय मेँ आशाओँ का समुद्र हिलोरे मार रहा था। पर खुशियोँ को नज़र लगते देर नही लगती। अभी वो सुनहरा सपना देख ही रहा था कि नन्हे पंछी का स्वप्नलोक मानो उजड़ गया हो, आशाओँ का समुद्र अचानक से सूख गया, उसके नन्हे पंख टूटकर जहाँ-तहाँ बिखर गए; जब एक दिन कुछ पुलिसवाले, एक मेमसाब, एक नेता जी और कैमरे वाले बाबू फैक्ट्री मेँ घुस गए और कहा :

"बेटा कल से तुम्हे काम पर आने की ज़रूरत नही।"
अगले दिन अखबार मेँ उसकी फोटो छपी थी नेता जी के साथ- "फलाँ फलाँ नेता जी ने बचाया मासूम का भविष्य।"

"पूजा"
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment

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Comment by pooja yadav on November 18, 2014 at 8:10pm
Dhanyawaad subhranshu ji. . .
Comment by Shubhranshu Pandey on November 18, 2014 at 7:27pm

सुन्दर कथा,

हर समाचार का एक दूसरा पहलु होता है...इस दूसरे पहलु को दिखाने के लिये बधाई..पूजा जी,

कथा के शिल्प पर गुनीजन अपने विचार देंगे.

Comment by pooja yadav on November 12, 2014 at 1:20pm
आप सभी की शुभकामनाओँ हेतु आभार।
भविष्य मेँ बेहतर लिखने का प्रयास करूँगी, बस आप सब यूँ ही मार्गदर्शन करते रहिए।
सादर।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 12, 2014 at 12:55pm

आपकी बात से पूर्णतय: सहमत हूँ डॉ प्राची सिंह जी, अभी भी इस लघुकथा में सम्पादन की ज़बरदस्त गुंजाइश है। अनावश्यक विवरण हटाकर इसको १० से १५ प्रतिशत छोटा किया जा सकता है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 12, 2014 at 12:45pm

भूख से बिलखता बचपन अपना भविष्य शिक्षा में नहीं देखता उसे तो चाहिए सिर्फ कुछ पैसे.... इसे न समझते हुए हमारी नीतियां का अमल किस तरह भविष्य निर्माण के खोखले दावे भर रह जाता हैं... बेशक सुन्दर सार्थक कथानक...जिसके लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई लेकिन शिल्प के स्टार पर अभी काफी काम करने की ज़रुरत है..

शुभकामनाएं  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 12, 2014 at 11:19am

हर समस्या के कई कई पहलू होते हैं, उसके पीछे कई कई कहानियां होती हैं अत: इन्हें मापने के लिए एक ही पैमाने का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है । यही बात आपकी इस लघुकथा से उभर कर सामने आई है। लघुकथा मर्मस्पर्शी है, जिस हेतु मेरी बधाई प्रेषित है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2014 at 10:47am

कहानी बहुत अच्छी बहुत अच्छे विषय पर है जिसके लिए आप बधाई की हकदार हैं पर लघुकथा के मानकों पर खरी उतरने के लिए कुछ कसावट मांग रही है जैसा की अन्य विद्वद्जन ने कहा है | जल्दी ही आप वो सीढ़ी भी पार कर लेंगी मुझे विशवास है, बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें 

Comment by pooja yadav on November 11, 2014 at 11:21pm
Saraahna hetu aap sabka tahe dil se shukriya. . .
Aadarneey ganesh bagi ji. . .mai sabhi sadasyo ki laghukathao, gazal, chand ityaadi sabhi niymit roop se padhti hu kintu abhi is yogya nahi ki sab par apni raay de saku. . . Par ketli mein ujaala mujhe khasi pasand aayi. . .uska shilp sanyojan. .mere liye aashcharyjanak roop se saraahneey tha. .waha shayad maine comment bhi kiya tha. . .
Saadar. . .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 11, 2014 at 8:02pm

आदरणीया पूजा जी, अनुरोध है कि ओ बी ओ पर प्रकाशित अन्य साथियों की लघुकथाओं को भी पढ़ें, हम सभी एक दूसरे से ही सीखते हैं, निश्चित ही आप कथा और लघुकथा के मध्य का अंतर जान पायेंगी ।

Comment by Sushil Sarna on November 11, 2014 at 6:25pm

आदरणीय  pooja yadav jee सुंदर विषय पर सुंदर कथा बाकी आदरणीय डॉ गोपाल जी से सहमत । 

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