For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (आलोक मित्तल)

कौन आया है अजनबी देखो !
खुशनुमाँ आज जिन्दगी देखो II

ध्यान देना ज़रा नजर भरके !
बैठ कर खूब सादगी देखो II

देख लो ठोक औ बजा करके I
ठीक सा कोइ आदमी देखो II

प्यार का अब हुआ असर ऐसा !
आप इसकी नई कमी देखो !!

हर तरफ चल रही सफाई है !
पर फिजाओं में गंदगी देखो !!

देखिये बँट रही मिठाई है !
कौन है फिर यहाँ दुखी देखो !!

जीत ली प्यार से मुहब्बत भी !
आज आलोक की ख़ुशी देखो !!

("मौलिक व अप्रकाशित")

** आलोक **

मथुरा

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Alok Mittal on November 6, 2014 at 10:58am

आ. जितेन्द्र पस्टारिया जी......मेरा हौसला बढाने का आपका बहुत बहुत आभार

Comment by Alok Mittal on November 6, 2014 at 10:57am

आ. डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.....हौसला बढाने का आपका सादर आभार

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 6, 2014 at 7:51am

बहुत अच्छी लगी आपकी गजल, आदरणीय आलोक जी. सामयिक शेरों पर अनेकानेक बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:02pm

सुन्दर रचना i  बधाई हो i

Comment by Alok Mittal on November 5, 2014 at 11:31am

आ. umesh katara जी.....हौसला बढाने का आपका सादर आभार

Comment by Alok Mittal on November 5, 2014 at 11:30am

आ. गिरिराज भंडारी जी....मेरा हौसला बढाने का आपका बहुत बहुत आभार

Comment by umesh katara on November 5, 2014 at 9:05am

बहुत बढिया ग़ज़ल कही है सर
---------हर तरफ चल रही सफाई है 
पर फिजाओं में गन्दगी देखो
वाहहहहहहहहहहह तात्कालिक


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 4, 2014 at 5:54pm

आदरणेय आलोक भाई , बढिया ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Alok Mittal on November 3, 2014 at 12:43pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी .....आप सब का आशीर्वाद और स्नेह मिलता रहे ...कोशिश सदा रहेगी अच्छा करने की ..आभार आपका


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:20am

ग़ज़ल कहने का बढ़िया प्रयास है आ० आलोक मित्तल जी, बधाई स्वीकारें एवं प्रयासरत रहें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
10 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
12 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service