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रखे मुझको भी हरदम बाख़बर कोई मेरे मौला

रखे मुझको भी हरदम बाख़बर कोई मेरे मौला 

बड़े भाई के जैसा हो बशर कोई मेरे मौला 

 

हुआ घायल बदन मेरा हुए गाफ़िल कदम मेरे

मेरे हिस्से का तय करले सफ़र कोई मेरे मौला

 

मुझे तड़पा रही है बारहा क्यूं छाँव की लज्ज़त

बचा है गाँव में शायद शजर कोई मेरे मौला

 

उदासी के बियाबाँ को जलाकर राख कर दे जो

उछाले फिर तबस्सुम का शरर कोई मेरे मौला

 

खड़ा हूं आइने के सामने हैरतज़दा होकर

इधर कोई मेरे मौला उधर कोई मेरे मौला

 

मेरी तक़दीर में लिक्खी न होती ठोकरें इतनी

अगर मुझमें रहा होता हुनर कोई मेरे मौला

 

मुझे मालूम हैं ‘खुरशीद’ होने के फ़राइज़ भी   

न रक्खूंगा उजालों में कसर कोई मेरे मौला

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by savitamishra on September 24, 2014 at 10:15pm

बहुत खुबसुरत

Comment by Santlal Karun on September 21, 2014 at 9:03pm

आदरणीय खैरादी जी,

सिद्ददत से रची इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"मुझे तड़पा रही है बारहा क्यूं छाँव की लज्ज़त

बचा है गाँव में शायद शजर कोई मेरे मौला"


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2014 at 8:42pm

खड़ा हूं आइने के सामने हैरतज़दा होकर

इधर कोई मेरे मौला उधर कोई मेरे मौला

क्या खूब बात कही भाई खुर्शीद जी , वाह !! ढेरों दाद क़ुबूल फरमाएं |

Comment by भुवन निस्तेज on September 21, 2014 at 3:50pm

खड़ा हूं आइने के सामने हैरतज़दा होकर

इधर कोई मेरे मौला उधर कोई मेरे मौला

आदरणीय खुर्शीद भाई इस बेहद उम्दा ग़ज़ल के लिएबेहद बधाई ...

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 21, 2014 at 2:33pm

बहुतउम्दा गजल है बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2014 at 12:00pm

खुर्शीद भाई

जितना समझ पाया उतने में मजा आया i पर उर्दू के कुछ कठिन शब्द से बाधा हुयी i आप इनके अर्थ प्रस्तुति के साथ दे सकते  है i बाहुनर कलम की दाद  देता हूँ i  सादर i

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