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बूँदे बरसे
घनश्याम ना आये
मन तरसे

अद्भुत बेला
नदियाँ उफनाईं
पानी का रेला

कोयल गाये
बरसे छम छम
मन को भाये

स्वर्ग धरा का
हाहाकार मचाये
नद मन का  

गौरैया आई

उपवन महका
बदरी छायी

व्याकुल धरा
तृप्त हुई जल से
आँचल हरा 

********************
मीना पाठक 
मैलिक /अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Santlal Karun on September 21, 2014 at 9:28pm

आदरणीया पाठक जी,

सारगर्भित एवं अर्थवान हाइकू के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 2:46pm

बेहतरीन आदरणीया  i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 20, 2014 at 8:25am

बहुत सुंदर. बधाई आपको आदरणीया मीना दीदी

Comment by Meena Pathak on September 19, 2014 at 2:46pm

रचना सराहने हेतु आभार आ० विजय जी, आ० श्याम जी, आ० नरेंद्र जी | सादर

Comment by Shyam Narain Verma on September 19, 2014 at 12:46pm

" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. "

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 18, 2014 at 11:03pm

बहुत सुन्दर ! विश्मय्कारी भी.बधाई

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