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फौलाद भी

चोट से आकार बदल लेते हैं

या टूट जाते हैं

फिर इंसान की क्या बिसात

कब तक सहेगा चोट

आखिर टूटना पड़ेगा

इंसान ही तो है

मगर

टूटकर भी कायम रहेगा

या बिखर जायेगा

ये इंसान की प्रकृति तय करेगी

 

हालात बदलने को तैयार है

पुरानी सड़क पर

डामर की नई परत बिछेंगी

खण्डरों का जीर्णोद्धार होगा

पुरानी इमारत के मलबे पड़े हैं

कुछ मलबे काम आयेंगे

कुछ मलबे मिटाये जायेंगे

ये इंसान भी

एक रोज़ मलबे की तरह पड़ा होगा

 

भंगार अनुपयोगी है

मगर भंगार की भी कीमत है

कुछ भंगार हैं

पानी की खाली बोतल की तरह

जिसकी कोई कीमत नही

खाली तो खत्म

मेरे दिल ने मुझसे पूछा

भंगार तुम्हे भी होना है

ये कहो

टूटकर भी काम आओगे

या टूटकर सड़ोगे?

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 8:27am

आदरणीय गणेशजी रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 29, 2014 at 8:07pm

कीमत तो खाली पानी की बोतल की भी है, बहरहाल अच्छी कविता हुई है, बहुत बहुत बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 8:45pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार

Comment by Vindu Babu on May 29, 2014 at 7:49pm

आदरणीय शिज्जू जी चिन्तन के लिए प्रेरित करती हुई प्रभावशाली रचना बनी है।

आपको बहुत बधाई।

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:11am

आदरणीया डॉ प्राची जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 27, 2014 at 5:20pm

मानव जीवन की उपयोगिता के प्रति सार्थक चिंतन को शब्दबद्ध करती इस रचना पर हार्दिक बधाई आ० शिज्जू शकूर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 23, 2014 at 9:01am

आदरणीय सौऱभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 3:38am

अच्छी कविता के लिए बधाई भाईजी

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 21, 2014 at 9:31pm

आदरणीय बृजेशजी आपका हार्दिक आभार

Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2014 at 3:19pm

अच्छे कविता है! आपको बधाई!

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