आशीर्वाद !!
वह कोई नब्बे के आस पास वृदधा रही होगी जो सामान सहित अपने ही घर के बाहर बैठी थी न जाने क्या अँड बंड बड़बड़ा रही थी । लोग सहनुभूति से देखते और और चल देते किसी ने हिम्मत भी की उससे जानने की तो वह ठीक ठीक नहीं बता पा रही थी । पता नहीं क्रोध की अधिकता थी या ममता और दुःख का मिश्रित भाव था जो शब्द न निकल रहे थे । बेटा कुछ दिनों से बाहर गया हुआ था और घर पर बहू अकेली थी , उस बेचारी बूढ़ी सास को उसकी बहू ने अपनी आफत समझ कर घर से बाहर कर कर दिया था । बूढ़ी सास बाहर बैठी बेटे का इंतजार कर रही थी कि बेटा आयेगा और वह उसकी व्यथा को समझेगा , बेटा आया माँ को बाहर समान सहित बैठे देखा लेकिन उसने एक नजर भी माँ पर न डाली चुपचाप अंदर चला गया । अंदर जाते ही पत्नी ने रो रो कर अपनी गाथा कह सुनाई । थोड़ी देर बाद बेटा बाहर आया , माँ ने सोचा शायद मुझे ले जाने आया है । परंतु यह क्या ? वह तो उसका समान ही उठा ले चला । माँ ने देखा बेटा घर मे न जा बाहर की ओर जा रहा है , बाहर आकार उसने एक रिक्शा रोका उसमे उनका समान रख दिया । माँ आवक सी उसे देखती रही कि वह क्या कर रहा है । उसने रिक्शे वाले से कहा ये जहां कहे उन्हे वहाँ छोड़ देना और वह घर के अंदर चला गया । बेबस माँ के मुंह से केवल एक ही शब्द निकला – “जीते रहो बेटा , सुखी रहो । “
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
कहानी यथार्थ के करीब लगनी चाहिए, इस कथा को पढ़ने के बाद पता नहीं क्यों बनावटी जैसा महसूस हो रहा है, सादर ।
आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी मनोबल को दूना कर देती है आपका हार्दिक आभार । सादर ।
आदरणीय शिजू जी आपका हार्दिक आभार ।
कथ्य सीधे-सीधे अपने आप बढ़ता जाता है और अंत करीब-करीब प्रेडिक्टेड सा है.
आपकी लघुकथाओं की प्रतीक्षा रहेगी, आदरणीया.
सादर
विश्वास ही नही होता कि कोई इतना निर्मम और अहसान फरामोश हो सकता है, जो माँ की ममता को न समझे वो इंसान कहलाने के लायक ही नही, आदरणीया अन्नपूर्णा जी इस मर्मस्पर्शी रचना के लिये बधाई
आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय आशुतोष जी अपने आसपास हो रही घटनाओं को देख कर ही लिखने की प्रेरणा मिलती है ये कथा एक टीवी चैनल पर देखि हुई न्यूज के आधार पर लिखी गई है । आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय बृजेश जी आपका हार्दिक आभार ।
अदरणीय जितेंद्र जी आपका हार्दिक आभार यूं ही स्नेह बनाए रखें । सादर
आदरणीय निकोर जी आपका हार्दिक आभार , आपका आशीर्वाद यूं ही टिप्पणी के रूप मे मिलता रहे । सादर ।
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