हे! कमल पर बैठने वाली सुंदरी भगवती सरस्वती को मेरा प्रणाम । तुम सब दिशाओं से पुजजीभूत हो । अपनी देह लता की आभा से ही क्षीर समुद्र को अपना दास बनाने वाली , मंद मुस्कान से शरद ऋतु के चंद्रमा को तिरस्कृत करने वाली............
माँ शारदा !!!
मार्ग प्रशस्त करो माँ अम्ब जगदम्ब हे !
आपकी शरण हम है माँ अम्ब जगदम्ब हे ! ........
श्वेत कमल विराजती वीणा कर धारती हे !
श्वेत हंस वाहिनी माँ श्वेताम्बर धारणी हे !
कमल सदृश नयन माँ भाग्य अनूपवती हे !
हरी हर से पुज्जित माँ हृदय मे वासती हे !
आपकी शरण मे हम है माँ जगदम्ब हे ! …………
दश दिशाएँ तुम्हें पुकारें माँ दूर करो अज्ञान हे !
देकर अपने कर से माता सुलभ सुज्ञान हे !
बने सभी बुद्धि विवेकी माँ दूर हो अज्ञान हे !
बम्ह सेविता हो कर माँ बाँचती ब्रम्ह ज्ञान हे !
आपकी शरण हम है, माँ अम्ब जगदम्ब हे !! ................. अन्नपूर्ण बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय दिलीप कुमार जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूर्ण ...जी माँ जगदम्बे की आराधना नवरात्र पर सादर बधाई . .
आदरणीय सुशील जोशी जी आपकी टिप्पणी ने मनोबल को बढ़ा दिया है आपका हार्दिक आभार ।
सुंदर भावों से सुसज्जित माँ शारदे की वंदना..... बधाई हो आदरणीया अन्नपूर्णा जी..... माँ शारदे आपकी लेखनी को और भी अधिक प्रशस्त करे, ऐसी कामना करता हूँ......
आदरनीय निकोर जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय विजय मिश्र जी आपका आशीर्वाद यूं ही मिलता रहे । सादर
आदरणीय भंडारी जी आपका हार्दिक आभार ।
वंदना में बहुत सुन्दर भाव पिरोय हैं , आदरणीया अन्नपूर्णा जी। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया अन्ंपूर्णा जी , बहुत सुन्दर माँ सरस्वती वन्दना , और सुन्दर प्रार्थना भी !!! बधाई !!!
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