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ग़ज़ल - वो तो खूने हिजाब पीता है - पूनम शुक्ला

2122. 1212. 22

कब वो खाली शराब पीता है
हुस्ने ताजा शबाब पीता है

कैसे खिलती वहाँ कली अबतर
वो तो खूने हिजाब पीता है

इतनी भोली खला कि क्या जाने
फिर वो अर्के गुलाब पीता है

ऐसी तदबीर जानता है वो
दिल में उठते हुबाब पीता है

जाने तसतीर भी नहीं उसकी
तब भी सारे खिताब पीता है

ऐसी तौक़ीर दूरतक जानिब
सबकी खाली किताब पीता है

पीना फितरत बना लिया उसने
बैठे ही लाजवाब पीता है

हिजाब - लज्जा
हुबाब - बुलबुला
अबतर - तितर बितर
खला - अन्धकारमय शून्य
तदबीर - उपाय
तसतीर - लेखन
तौक़ीर - प्रतिष्ठा

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 9:00pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आ० पूनम शुक्ला जी

 जाने तसतीर भी नहीं उसकी
तब भी सारे खिताब पीता है........ये शेर बहुत पसंद आया 

हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 6:23pm

वाह ! बहुत सुन्दर प्रयास के लिए बधाई..

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 2:16pm

वाह! बहुत सुन्दर! संशोधन के बाद लाजवाब हो गयी है ये ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 9:59am

ऐसी तदबीर जानता है वो
दिल में उठते हुबाब पीता है----ये शेर बहुत पसंद आया 

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने आदरणीय वीनस जी की बात से सहमत हूँ ,और हाँ मकते के सानी में सुधार की गुंजाइश है 

फिलहाल दाद कबूलें 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:01am

बहुत ही उम्दा भावों का संप्रेषण है आदरणीया पूनम जी..... बधाई हो....

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 9:44pm

बधाई पूनमजी, बहुत सुंदर एवं  अच्छे  स्तर की गज़ल कही आपने ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 9:18pm

आदरणीया पूनम जी ..वाकई शानदार ग़ज़ल ..मैंने तो जी भर के गुनगुनाया ..उर्दू के इतने बेहतरीन शब्दों की बेहतरी अंदाज में प्रयोग ..काफी कुछ सीखने को मिला ..आदरणीय वीनस जी की प्रतिक्रिया से भी ज्ञान में इजाफा हुआ ..उन्हें भी धन्यवाद ..आपको सदर बधाई के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 12:50pm

आदरणीया ग़ज़ल पर उम्दा प्रयास हुआ है आदरणीय वीनस भाई जी की बातों पर गौर फरमाएं काफी कुछ सरल हो जायेगा.

Comment by वीनस केसरी on October 14, 2013 at 1:29am

वो तो खाली शराब पीता है
हुस्ने ताजी शबाब पीता है

हुस्ने ताज़ी को हुस्ने ताज़ा कीजिये ...
जब ताज़ा शब्द भी पीता है तो पहले मिसरे में कही बात .. खाली शराब की बात कट जा रही है 

इसे ऐसे किया जा सकता है

कब वो खाली शराब पीता है
हुस्ने ताज़ा शबाब पीता है

बाकी ग़ज़ल दुरुस्त है ,,,
हाँ एक जरूरी बात ... आपने जो मात्रा लिखी है वो गलत है .. सही अरकान ये है = २१२२ / १२१२ / २२

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