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गुमशुदा खुशियां कहां रहने लगी है आज छुप कर

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर

***************************************

दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना

क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे

जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर

रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर  

जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना

किस तरह मैने गुज़ारा वक़्त अपना उन दिनों में

तुम घिरोगे जब कभी तो उलझनों से पूछ लेना

.

गिरिराज भंडारी

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on August 31, 2013 at 10:38pm

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना       ( दोस्तों से पूछ लेना की जगह " तुम खुदी से पूछ लेना " ज्यादा सही लगता है।  जितने दोस्त उतनी प्रतिक्रिया भी तो होगी )।

पूरी गजल में प्रवाह है अच्छी लगी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 10:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया , सौरभ भाई !! मिसरा सुधारने का प्रयास करूंगा !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 10:29pm

//मुझे बह्र की जानकारी नही है , यूँ ही स्वांतः सुखाय लिखता था , अभी ओ बी ओ ज्वाइन करने के बाद गज़ल सीख रहा हूँ //

यह स्पष्ट हो गया है, आदरणीय गिरिराज जी. परन्तु, आपके उत्साह और साहित्यानुराग के प्रति हम सम्मान का भाव रखते हैं. आपकी ग़ज़ल के मिसरों की मात्रा २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ पर आधारित है. किन्तु, अधोलखित मिसरा इस संयोजन से अलग है.

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

लेकिन पुनः कहूँगा,  प्रस्तुत ग़ज़ल की तासीर मुग्ध करती है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 3:21pm

आदरणीय आशुतोष भाई रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 3:18pm

आदरणीया , राजेश कुमारी जी , हौसला अफज़ाई के लिये  आपको बहुत बहुत धन्यवाद !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 3:16pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपके हर शब्द मेरे लिये अमूल्य है ! आपका हार्दिक आभार !

मुझे बह्र की जानकारी नही है , यूँ ही स्वांतः सुखाय लिखता था , अभी ओ बी ओ ज्वाइन करने के बाद गज़ल सीख रहा हूँ , आप लोगों के सहयोग से ! आशा है सुधार कर पाउंगा !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2013 at 2:54pm

वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी सुभानल्लाह क्या ग़ज़ल लिखी है शानदार तहे दिल से दाद दे रही हूँ 

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर

रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना---kamaal


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 2:26pm

मैं नहीं समझता आप ग़ज़ल लिखते/ कहते नहीं होंगे. आपकी इस आपकी इस प्रस्तुति पर मैं दिल से बधाई दे रहा हूँ, आदरणीय गिरिराज जी.
मतले के उला में आसुँओं से पूछ लेना होगा. से बस टंकित होने से रह गया है.
मैं आपकी सोच और प्रस्तुति पर हृदय से बधाइयाँ दे रहा हूँ.

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे
जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर
रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना

उपरोक्त अशार ने तो बस मुग्ध कर दिया.
आपसे और की अपेक्षा है, आदरणीय.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:33am

अशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:32am

आदरणीय बृजेश भाई , आपका आभार !!  बहर की क्लास मे मै अभी खुद नया हूँ , 5 -6 दिन हुये है ! पुरानी रचना को वीनस भाई जी बह्र पूछ कर फिर सुधार कर पोस्ट किया था । सही सुधार पाया कि नही तय नही था । आगे से क्याल रखूंगा !!

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