For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं वाकिफ हूँ ,हकीकत से, ज़माने की 
इसे आदत, है चिढ़ने की,चिढ़ाने की ...

.
बहुत मुश्किल हुनर है ये , भला सब को 
कहाँ आती कला रिश्ते निभाने की ...

.
सज़ा क्या दूँ तुम्हें आखिर बताओ तो 
मेरी आँखों से नींदों को चुराने की ...

.
बयां इक शेर में, हो सकता है जब सब 
ज़रूरत क्या तुम्हें किस्सा सुनाने की ..

.
इसे महसूस करिएगा 'अजय' दिल से 
मुहब्बत शै नहीं दिखने दिखाने की...

मौलिक व अप्रकाशित ... अजय अज्ञात 

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Agyat on April 9, 2014 at 7:31pm

सभी दोस्तों का धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 1:38pm

मतले ने ही आकर्षित किया. आगे के सभी अशार अपने हिसाब से बातें करते हैं. 

दिल से दाद कह रहा हूँ. 

आपने अग़र १२२२ १२२२ १२२२  भी चस्पां कर दिया होता तो नये प्रयासकर्ताओं को आपकी ग़ज़ल के मिसरों की तकनीक को समझने में बहुत कुछ सहुलियत हो सकती है.

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 2, 2013 at 2:50pm

आदरणीय सर जबरदस्त ग़ज़ल हुई है सभी शे'र लाजवाब बन पड़े हैं, इस शानदार ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by vandana on August 2, 2013 at 6:07am


बयां इक शेर में, हो सकता है जब सब 
ज़रूरत क्या तुम्हें किस्सा सुनाने की ..

सभी शेर बेह्तरीन 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2013 at 12:30pm

सज़ा क्या दूँ तुम्हें आखिर बताओ तो 
मेरी आँखों से नींeदों को चुराने की ...kamal ka sher ...saadar badhayee sweekarein

Comment by बसंत नेमा on August 1, 2013 at 10:50am

अअ0 अजय जी बहुत सुन्दर गजल सुन्दर भाव और सुन्दर प्रस्तुति ...बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2013 at 10:47am

//बयां इक शेर में, हो सकता है जब सब 
ज़रूरत क्या तुम्हें किस्सा सुनाने की //

वाह कमाल का शे'र है अजयजी,

इस ग़ज़ल केलिए दाद क़ुबूल फरमाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service