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मुखतलिफ़ शेर .... 

.

लाख कोशिश कर ले इंसा कुछ नहीं कर पाएगा
मौत की जद में किसी दिन जिंदगी आ जाएगी

इबादत करना चाहो गर खुदा की तुम हकीकत में
मुहब्बत के चिरागों को कभी बुझने नहीं देना ...

आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए 
इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को .....

 

रायगां बहने नहीं देता इन्हें 
अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....

 

दिया मुझ को मेरी किस्मत ने सब कुछ
मगर तेरी कमी अब भी है बाकी….

 

मेरे लफ़्ज़ों में खुशबू है मेरा लहजा भी शीरी है
मुझे हासिल है फ़न तहजीब से अशआर  कहने का…..

 

ख्वाब जिस के रात दिन, देखे थे मैंने दोस्तो 
दर्दे दिल की लौ जला, वो दूर क्यूँ मुझ से हुआ .....

तक़दीर खुद सँवारता है अपने हाथ से 
अज्ञात ने नसीब से मिन्नत कभी न की ..

अजय उगने न पाये अब कहीं बारूद खेतों में 
अमन के वास्ते आओ ज़मीं में ख़ुशबुएँ बोएँ ....

मैं इक अदना सा खादिम हूँ ग़ज़ल का 
मेरे अशआर हैं पहचान मेरी ...

मेरी माँ की दुआएं ही हमेशा 
बचाती हैं मुझे बर्कों बला से 

ज़ेहन में जिसके मची रहती हो हरदम खलबली 
मयकदों या बुतकदों में कैसे पाए वो सुकूँ ....

बेशक खाओ पाँच सितारे होटल में
स्वाद अलग ही होता है लंगर में कुछ ....

.

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 529

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Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2013 at 4:52pm

बहुत ही सुंदर  रचना.................................

Comment by Sumit Naithani on June 28, 2013 at 4:01pm

बहुत ही सुंदर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 27, 2013 at 7:47pm

बहुत खूबसूरत अशआर आ० अजय शर्मा जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on June 27, 2013 at 4:50pm

आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए 
इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को ...बहुत सुंदर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 12:48pm

सभी अशआर सुन्दर हैं आदरणीय बधाई स्वीकारें.

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Comment by aman kumar on June 27, 2013 at 11:27am

अच्छी रचना ! 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2013 at 11:07pm

आ0 अजय भाई जी,  अजीज और लजीज अशआर।  तहेदिल से दाद कुबूल करें।  सादर,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 26, 2013 at 9:34pm

//रायगां बहने नहीं देता इन्हें 
अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....//

वाह वाह वाह !!! क्या कहने हैं इस शेअर के अजय कुमार शर्मा साहिब,

कृपया ध्यान दे...

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