For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये भोर
काली रात के बाद

अब भी सिसकती है
यादों के ताजे निशाँ
सूखे ज़ख़्मों को
एक टक ताकती  

उसे नहीं पता
आने वाली शाम और
रात कैसी होगी

पता है तो बस
बीता हुआ कल
वो बीता हुआ कल  
जो निकला था
उसकी कसी हुई मुठ्ठी से
रेत की तरह
देखते देखते
रेत की तरह
भरी दोपहर में
तपते रेगिस्तान में
ज्यों छलती है रेत
मृग मारीचिका की तरह

मृग मारीचिका
जिससे भान होता है
पानी का
हाँ नहीं था वहाँ पानी

पानी
न आखों में
न व्यक्तित्व में

आँखों में थी तो बस
हैवानियत
और व्यक्तिव में
आतंकवाद

भोर ने हाथ रचाए हैं
रक्त से
और बैठी है
श्मशान में
अनसन कर रहे
फरियादियों के साथ

कहती है वो कल था
और ये आज है
मुझे तो ये
ताज़ा निशाँ
सुकून देते हैं
और जख्म हर रोज सूखते हैं
हरे हो होकर

दीप
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 455

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 12:47pm
आप सभी आदरणीय अग्रजों और सम्मानीय सदस्यों का हृदय की गहराइयों से धन्यवाद
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
समयाभाव और कुछ कारणों से समय कम दे पा रहा हूँ सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ
Comment by Parveen Malik on July 15, 2013 at 8:27pm
सन्दीप जी बहुत बढिया ....
Comment by रविकर on July 15, 2013 at 10:12am

रोज रोज की दास्ताँ, हरे-भरे हों घाव |
सूख नहीं पाए कभी, ठांय ठांय हर ठांव ||

सटीक प्रगटीकरण-
शुभकामनाएं आदरणीय संदीप जी-


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 14, 2013 at 9:29pm

वाह ! बधाई.. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:29pm

एक अलग ही शैली में आपकी रचना , मन मुग्ध हो गया............

Comment by vijay nikore on July 13, 2013 at 4:09am

//कहती है वो कल था
और ये आज है
मुझे तो ये
ताज़ा निशाँ
सुकून देते हैं
और जख्म हर रोज सूखते हैं
हरे हो होकर //

अति सुन्दर अभिव्यक्ति । बहुत ही मार्मिक भाव हैं, आदरणीय।

विजय निकोर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 11:01pm

आ0 संदीप भाई जी,
--मुझे तो ये
ताज़ा निशाँ
सुकून देते हैं
और जख्म हर रोज सूखते हैं
हरे हो होकर ... अतिसुन्दर एवं लाजवाब प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by D P Mathur on July 12, 2013 at 8:49pm

पता है तो बस 
बीता हुआ कल
वो बीता हुआ कल  
जो निकला था 
उसकी कसी हुई मुठ्ठी से 
रेत की तरह 

सुन्दर रचना की आपको बधाई !

Comment by Pankaj Trivedi on July 12, 2013 at 7:07pm

सुन्दर प्रस्तुति

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service