उसके आने की डगर अब देखता रहता हूँ मैं।
लेके टूटे ख़ाब शब भर जागता रहता हूँ मैं॥
रोज़ बनकर चाँद आँगन में मेरे आता है वो,
रोज़ उसकी चाँदनी में भीगता रहता हूँ मैं॥
इक अजब सी तिष्नगी है जो कभी बुझती नहीं,
किस नदी की जुस्तजू में घूमता रहता हूँ मैं?
कह रहे हैं लोग मैं पागल हूँ उसके इश्क़ में,
बेख़ुदी में नाम उसका बोलता रहता हूँ मैं॥
जानता हूँ ख़ाब उसके तोड़ देंगे नींद को,
फिर भी सोने का बहाना ढूँढता रहता हूँ मै॥
आईने में अक्स मेरा रहता उतनी देर तक,
ख़ुद को जितनी देर उसमें ताकता रहता हूँ मैं॥
छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,
जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥
मौज़ पर बहते हुए पत्ते का है अंजाम क्या?
बैठकर दरिया किनारे सोचता रहता हूँ मैं॥
कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,
ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
Comment
मुसाफिर जाएगा कहाँ
बधाई सर जी
बहुत ही सुन्दर है ...हर शेर मुकम्मल .और गहरे भाव समेटे हुए निसब्द हु तारीफ़ के लिए शब्द नहीं है .
डॉक्टर साहब, क्या कहूँ ! इस ग़ज़ल पर मेरी हृदय से बधाई लीजिये.
ग़ज़ल ठीक-ठाक बीट पर ही शुरू होती है. शुरू के हर शेर के बाद मन बेसाख़्ता वाह-वाह करता है. कि, आखिरी के तीन अश’आर अचानक से चकित कर देते हैं. ग़ज़ब के भाव और उतनी ही ज़बर्दस्त कहन के साथ.. . अद्भुत !
हृदय से बधाई.
बेहतरीन अशआर हो गए भाई
इस ग़ज़ल में आपके शेर रवानगी से भरपूर हैं कहीं कोई अटकाव नहीं है कोई शब्द अटकाव पैदा नहीं कर रहा है
कुछ शेर तो बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं कुछ में आपने बहुत संजीदा भाव को समेट लिया है
पुनः बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए और आपकी मेहनत के लिए .....
मित्रवर, इन अशआर के लिए अलग से ढेरों दाद कबूल करें
छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,
जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥
मौज़ पर बहते हुए पत्ते का है अंजाम क्या?
बैठकर दरिया किनारे सोचता रहता हूँ मैं॥
कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,
ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥
बहेतरीन आला दर्जे की गजल है खास कर
ये शेर
छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,
जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥
मौज़ पर बहते हुए पत्ते का है अंजाम क्या?
बैठकर दरिया किनारे सोचता रहता हूँ मैं॥
कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,
ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥ डायमंड लाईने हैं
आखरी लाईन ....दार्शनिक पक्तियां है
उम्दा गजल के लिए मुबारकबाद
छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,
जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥
कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,
ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥
छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,
जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥-- क्या ज़बरदस्त शे'र कहा आपने!
वाह डॉ. साहब... आपकी प्रिय बह्र पर आपने एक और शानदार ग़ज़ल प्रस्तुत की! बहुत ख़ूब...
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