कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,
मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥
हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥
Comment
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
सत्य
बधाई सर जी
हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥
बोलता हुआ शे’र है ’सूरज’ जी, बधाई!
वाह डा. साहब गज़ब ढा दिया आपने , बहुत-२ बधाई.....
डॉ.सूर्या बाली जी, बढ़िया गज़ल
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,
मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥
इन अश'आरों ने गजब ही ढा दिया, जिंदगी का फलसफा भी, हकीकत भी, भई वाह !!!!!!!!!
न तोड़ो दिल किसी का यार दिन हैं चार जीवन के
कभी अनजानी गलती से भी नाता टूट जाता है ||
नहीं जुड़ता, अगर जुड़ता भी है तो गाँठ पड़ती है
हो कितना भी बुलंदी पर , सितारा टूट जाता है ||
बाली जी
सादर नमस्कार,
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हर पक्ष को बखूबी पेश किया है. बहुत बहुत बधाई.
वाह डॉ. साहब.. क्या ख़ूब कलाम पेश किया आपने! अदब का शानदार मुज़ाहिरा रहा यह! बधाई आपको!
//कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,
मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥//
आदरणीय डॉ० सूर्या बाली “सूरज” साहब, मतले से लेकर मकते तक के अशआर ने हृदय को स्पर्श किया है ..............बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ! सादर
बहुत ही ग़ज़ब का मतला है डॉक्टर साहब. किसी लम्हे में सदियों के होने का भरोसा होना जिस आत्मीयता की निशानी है उसके दरकने के गिर्द आपके कई भाव दिलकश बन पड़े हैं.
इसी उठान पर ये शेर है --
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
कुछ क्षणों की रौद्रता को किस गहराई से महसूस किया है आपने और मौजूं बना डाला है, वाह !
बहुत-बहुत बधाई इस संवेदना के लिये.. . बहुत खूब !!
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
सुभान अल्लाह ......... बेहतरीन ..... खुबसूरत ख्याल .... दाद कुबूल फरमाएं डॉ .सूरज साहेब
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