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ढोल- नगाड़े
हाथी- घोड़े
आतिशबाजी
इतने रंग
सब हैं संग
कभी पालकी लिए
कभी रणभूमि
कभी रंगभूमि
चले जा रहे हैं
भागे जा रहे हैं
सींचे जा रहे हैं
शीतल जल
क्या कोई घड़ा है
इनके हाथों में
अहा ये क्या
ये घोर निनाद कैसा
अग्नि बाण है
या आतिशबाजी ही है
ढोल-नगाड़े
तीव्र ध्वनी से
और तीव्र
मानो महाभारत हो रहा हो
शीतल फुहारों से
फिर जल सिंचन क्यूँ
क्या ये भी बाण है
वर्षा बाण
ये कैसी स्वर लहरी है
अहा
वाह
निनाद थमा
आतिशबाजी भी रुक गयी
स्वर लहरी भी समाप्त हुई
जल सिंचन भी रुक गया
और ये क्या
लज्जा लिए
कौन झांक रहा है
घूँघट कौन उठा रहा है
सहमी सी
सकुचाई सी
निश्छल सी मुस्काई सी
ये तो सूरज की
चंचल किरण है
जो झांक रही है
बादलों की ओट से

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 18, 2012 at 9:44am

और ये क्या 
लज्जा लिए 
कौन झांक रहा है
घूँघट कौन उठा रहा है 
सहमी सी 
सकुचाई सी 
निश्छल सी मुस्काई सी 
ये तो सूरज की 
चंचल किरण है 
जो झांक रही है 
बादलों की ओट से बहुत प्यारा बिम्ब लिया है रचना में बहुत खूब 

Comment by Rekha Joshi on July 14, 2012 at 11:25pm

आदरणीय सदीप जी 

सहमी सी 
सकुचाई सी 
निश्छल सी मुस्काई सी 
ये तो सूरज की 
चंचल किरण है 
जो झांक रही है 
बादलों की ओट से ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 14, 2012 at 10:57pm

और ये क्या 
लज्जा लिए 
कौन झांक रहा है
घूँघट कौन उठा रहा है 
सहमी सी 
सकुचाई सी 
निश्छल सी मुस्काई सी 
ये तो सूरज की 
चंचल किरण है 
जो झांक रही है 
बादलों की ओट से 

प्रिय संदीप 'दीप' जी ..प्रकृति नटी है हर रंग समाया है सरमाया है ...दुल्हन सी खूबसूरत आँख मिचौली ....

कभी वक्त मिले तो मेरी एक रचना निम्न ब्लॉग पर पढियेगा ..मेह सावन की बदरी नहाने लगी ...
भ्रमर ५ 

 

http://www.surendrashuklabhramar.blogspot.in/2012/05/blog-post_23.html

Comment by Albela Khatri on July 14, 2012 at 12:05pm

भाई वाह वाह
संदीप पटेल जी,वाह !

निनाद थमा
आतिशबाजी भी रुक गयी
स्वर लहरी भी समाप्त हुई
जल सिंचन भी रुक गया
और ये क्या
लज्जा लिए
कौन झांक रहा है
घूँघट कौन उठा रहा है
सहमी सी
सकुचाई सी
निश्छल सी मुस्काई सी
ये तो सूरज की
चंचल किरण है
जो झांक रही है
बादलों की ओट से
____क्या अन्दाज़ है..........बलिहारी इस अनुपम काव्य चित्र पर

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