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2122 1122 1122 22
1
गर्म अफ़वाहों का बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे
बिक रहा झूठ का अख़बार ख़ुदा ख़ैर करे
2
चार सिक्कों की ख़नक जेब में क्या होने लगी
हो गए हम भी तलबगार ख़ुदा ख़ैर करे
3
शांत लहरों में भी कश़्ती को सहारा न मिला
डूबी मँझधार में पतवार ख़ुदा ख़ैर करे
4
इश़्क था या कि अज़ीयत ओ फ़ज़ीहत का सफर
है अलम दिल का पुर आज़ार ख़ुदा ख़ैर करे

बाँध रक्खा है किनारों ने संमदर ऐसे
रुक गई लहरों की रफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे

5
हो न मायूस बुरा दौर चला जाएगा
वक़्त रहता नहीं इकसार ख़ुदा ख़ैर करे
6
दोनों उलझें हैं रिवायत की लगी गाँठों में
कोई हो इनमें समझदार ख़ुदा ख़ैर करे

कोरोना पर
7
पैर फैलाए वबा घर में घुसी आती है
अपने होने लगे बीमार ख़ुदा ख़ैर करे

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Rachna Bhatia on April 4, 2020 at 1:19pm

आदरणीय समर कबीर सर

बहुत सुंदर इस्लाह दी।आपकी बहुत आभारी हूँ।साथ ही बार बार तंग करने के लिए मुआफ़ी भी चाहती हूँ।

Comment by Samar kabeer on April 3, 2020 at 3:20pm

//इनमें कोई न समझदार ख़ुदा खैर करे' क्या यह कर सकते हैं//

इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-

'और हैं दोनों ही मक्कार ख़ुदा ख़ैर करे'

Comment by Rachna Bhatia on April 3, 2020 at 12:57pm

आदरणीय समर कबीर सर ग़ज़ल तक आने तथा अपना क़ीमती वक़्त देने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ। सर, आपकी इस्लाह से ग़ज़ल "ग़ज़ल"बन गई। बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय,आपके लिए कोई शब्द नया नहीं है यक़ीनन मैंने सही शब्द का चुनाव नहीं किया ।

मैं यहाँ " एक जैसा"वक़्त कहना चाहती थी अर्थात बुरा वक़्त बदल जाएगा । सादर।

आदरणीय,

दोनों उलझें हैं रवायत की लगी गाँठों में

कोई हो इनमें समझदार ख़ुदा ख़ैर करे

में सानी 

'इनमें कोई न समझदार ख़ुदा खैर करे' क्या यह कर सकते हैं।

सादर आभार

 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 8:09pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

'शांत लहरों में भी कश़्ती को सहारा न मिला
डूबी मँझधार में पतवार ख़ुदा ख़ैर करे'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,ऊला यूँ कर सकती हैं:-

' किस तरह सामना तूफ़ाँ से करेंगे यारो'

और सानी में 'डूबी' की जगह "टूटी" कर लें ।

'इश़्क था या कि अज़ीयत ओ फ़ज़ीहत का सफर
है अलम दिल का पुर आज़ार ख़ुदा ख़ैर करे'इस शैर का भाव स्पष्ट 

नहीं,और सानी में 'पर' शब्द के कारण मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,शैर यूँ कर सकती हैं:-

'आशिक़ी के भी सफ़र में है अज़ीयत लेकिन

है अलग दिल का ये आज़ार ख़ुदा ख़ैर करे'

'वक़्त रहता नहीं इकसार ख़ुदा ख़ैर करे'

इस मिसरे में 'इकसार' शब्द मेरे लिए नया है,अर्थ बताने का कष्ट करें ।

'दोनों उलझें हैं रिवायत की लगी गाँठों में'

इस मिसरे में 'रिवायत' को "रवायत" कर लें ।

'कोई हो इनमें समझदार ख़ुदा ख़ैर करे'

इस मिसरे में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ  ।

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