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Azeez Belgaumi's Blog (7)

GAZAL BY AZEEZ BELGAUMI

अहबाब ऐतबार के काबिल नहीं रहे

ये कैसे सर हैं ..! दार के काबिल नहीं रहे



जज़्बात इफ्तेखार के काबिल नहीं रहे

अब नवजवान प्यार के काबिल नहीं रहे



हम बेरुखी का बोझ उठाने से रह गए

कंधे अब ऐसे बार के काबिल नहीं रहे



ज़ागो ज़गन तो खैर, तनफ्फुर के थे शिकार

बुलबुल भी लालाज़ार के काबिल नहीं रहे



पस्पाइयौं के दौर में यलगार क्या करें

कमज़ोर लोग वार के काबिल नहीं रहे



कांटे पिरो के लाये हैं अहबाब किस लिए

क्या हम गुलों के हार…

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Added by Azeez Belgaumi on May 25, 2011 at 12:15am — 7 Comments

GAZAL by AZEEZ BELGAUMI

ग़ज़ल 



अज़ीज़ बेलगामी



हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए

हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए



अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार

जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए



वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं

थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए



मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब

मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए



दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ

किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए



गुलशन के बीच खिलने लगे…
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Added by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 10:11am — 16 Comments

Ek aur Gazal aap ke liye

ग़ज़ल 

अज़ीज़ बेलगामी 

मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी 

अगरचे आग बुझी है  धुवाँ धुवाँ  है  अभी

यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं…

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Added by Azeez Belgaumi on December 29, 2010 at 10:53am — 3 Comments

ग़ज़ल : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल



अज़ीज़ बेलगामी



ग़म उठाना अब ज़रूरी हो गया

चैन पाना अब ज़रूरी हो गया



आफियत की ज़िन्दगी जीते रहे

चोट खाना अब ज़रूरी हो गया



गूँज उट्ठे जिस से सारी काएनात

वो तराना अब ज़रूरी हो गया



जारहिय्यत  के दबे एहसास का

सर उठाना अब ज़रूरी हो गया



अब करम पर कोई आमादा नहीं

दिल दुखाना अब ज़रूरी हो गया



साज़िशौं, रुस्वायियौं को दफ'अतन…

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Added by Azeez Belgaumi on December 26, 2010 at 2:00pm — 7 Comments

GAZAL ग़ज़ल by अज़ीज़ बेलगामी

 

ग़ज़ल

by

अज़ीज़ बेलगामी

 

हम समझते रहे हयात गयी

क्या खबर थी बस एक रात गयी



खान्खाहूँ से मैं निकल आया

अब वो महदूद काएनात…

Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 19, 2010 at 4:00pm — 22 Comments

ज़िन्दगी बंदगी वरन क्या ज़िन्दगी - ग़ज़ल

ग़ज़ल

अज़ीज़ बेलगामी



नै फ़क़त खुशनुमा मश्घला ज़िन्दगी

ज़िन्दगी अज्म है हौसला ज़िन्दगी



हालत - ए -ज़हन का आईना ज़िन्दगी

निय्यत - ए -क़ल्ब का तजज़िया ज़िन्दगी



ज़िन्दगी , बंदगी .. वरन क्या ज़िन्दगी

बंदगी ही का एक सिलसिला ज़िन्दगी



ये कभी जोक - ए -सजदा की तकमील है

और कभी यूरिश - ए -कर्बला ज़िन्दगी



खौफ ने जोहर - ए -ज़िन्दगी ले लिया

अज्म ने तो मुझे की अता ज़िन्दगी



तेरी मज्बूरियौं का मुझे इल्म… Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 3, 2010 at 12:30pm — No Comments

पहली बार एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर हो रहा हूँ : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल

("मोहब्बत" की नज्र)



अज़ीज़ बेलगामी, बैंगलोर





ज़मीं बंजर है, फिर भी बीज बोलो, क्या तमाशा है

तराजू पर, खिरद की, दिल को तोलो, क्या तमाशा है



ज़माने से छुपा रख्खा है हम ने सारे ज़खमौं को

सितम के दाग़-ए-दामां तुम भी धोलो, क्या तमाशा है



अभी चश्मे करम की आरज़ू है सैर-चश्मों को

हो मुमकिन तो हवस के दाग़ धो लो, क्या तमाशा है



नहीं कशकोल बरदारी तुम्हारी, वजह–ए-रुसवाई

मोहब्बत मांगनी है मुह तो खोलो, क्या तमाशा… Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 2, 2010 at 11:30am — 8 Comments

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