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पहली बार एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर हो रहा हूँ : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल
("मोहब्बत" की नज्र)

अज़ीज़ बेलगामी, बैंगलोर


ज़मीं बंजर है, फिर भी बीज बोलो, क्या तमाशा है
तराजू पर, खिरद की, दिल को तोलो, क्या तमाशा है

ज़माने से छुपा रख्खा है हम ने सारे ज़खमौं को
सितम के दाग़-ए-दामां तुम भी धोलो, क्या तमाशा है

अभी चश्मे करम की आरज़ू है सैर-चश्मों को
हो मुमकिन तो हवस के दाग़ धो लो, क्या तमाशा है

नहीं कशकोल बरदारी तुम्हारी, वजह–ए-रुसवाई
मोहब्बत मांगनी है मुह तो खोलो, क्या तमाशा है

यकीं कर लो, तुम्हें मंजिल तलक हम ले के जायेंगे
चले आओ, हमारे साथ हो लो, क्या तमाशा है

अभी तक गेसुवों के पेचो-ख़म की बात होती है
भिगो लो, अब तो पलकों को भिगो लो, क्या तमाशा है

"अज़ीज़" आंसू बहाने को जहां तैयार बैठा है
ज़रूरी तो नहीं है, तुम भी रो लो, क्या तमाशा है


Khirad : Aql
Kashkol bardaari : Bheek ka katora uthaaye huwe rahna

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Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 5:51pm

Tiwari sir... pata nahiN aap ke comment par meri nazar kyouN nahiN paDi... khair aap ne jo ummideN mujh se wabasta kar rakhkhi haiN... Insha Allah .. unheN pura karne puri koshish karrunga...

Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 5:49pm

Yograj prabhakar ji... bahut taakhir se ap ka shukriya adaa kar raha huN.. bahut sharminda huN... AAp ne meri gazal ko pasand kiya is ka behad shukriya.. aap ke saath rah kar mujhe bahut khushi hogi... Shukriya... Ishwar aap ko khush rakhkhe.. Ameen

Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 5:47pm

Navin ji meri nazar apke is comment par shayad paDi nahi.. MaiN bahut sharminda huN... aap ki satayish mere liye baaiC-e-Himmat afzaai hai.. Ishwar aap ko khush rakhkhe... Ameen

Comment by Azeez Belgaumi on December 21, 2010 at 5:44pm

Aadarniya Pandey ji ... Shukriya... aap mere saath raheN... Main koshish karunga ke aap ke zauq ka saaman hota rahe... Aap ki ummidouN par pura utarne ki puri koshish karta rahunga. khush raheN..

Comment by Abhinav Arun on December 21, 2010 at 2:43pm

अज़ीज़ बेलगामी साहब गज़ल पढकर हृदय प्रसन्न हो गया ,मुझे बारीकियों की उतनी पहचान तो नहीं पर एक आम पाठक की तरह मैं कह सकता हूँ की आपकी आमद ओ.बी.ओ. को काफी समृद्ध कर रही है |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 3, 2010 at 2:26pm
निहायत ही पुरकशिश और पुरनूर आशार कहे हैं आपने अजीज़ साहिब - वाह वाह ! मतले से मकते तक एक एक शेअर आपकी बाकमाल कारीगरी का शाहिद है ! दर्जा ज़ैल शेअर तो दिल को छू कर निकल गया :

//अभी चश्मे करम की आरज़ू है सैर-चश्मों को
हो मुमकिन तो हवस के दाग़ धो लो, क्या तमाशा है //

इस खूबसूरत ग़ज़ल को हम सब के साथ साझा करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
Comment by Azeez Belgaumi on December 2, 2010 at 11:21pm
Dhanyawad mohataram Lata sahiba... Ishwar khush rakhkhe aap ko : AZEEZ BELGAUMI
Comment by Lata R.Ojha on December 2, 2010 at 6:27pm
अभी तक गेसुवों के पेचो-ख़म की बात होती है
भिगो लो, अब तो पलकों को भिगो लो, क्या तमाशा है
ye panktiyaan bahut hi pasand aayin...:)

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