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Sushil Sarna's Blog – June 2015 Archive (6)

संशोधित दोहे :...........

संशोधित दोहे :



कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान

विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान

पैसा  काम न  आयेगा, जब आएगा काल

रह  जाएगा  सब यहीं , काहे  करे  मलाल

काया माया का  भला , काहे  करे   गुमान

नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान

ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़

चुका  न  पाया  दूध का , जीवन में वो क़र्ज़

मानव  दानव  बन  गया, किया खूब संहार

पाप  कर्म से  कर  लिया,  पापी  ने…

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Added by Sushil Sarna on June 24, 2015 at 4:30pm — 18 Comments

चेहरे की रेखाओं में …

चेहरे की रेखाओं में …

जाने कैसी बेरहम हो तुम

सिसकने की वजह देकर

खामोशी से चली जाती हो

चेहरे की रेखाओं में

दर्द के रंग भर जाती हो

स्मृति के किसी कोने में कुछ दृश्य

मेरे अन्तःमन को विचलित कर जाते हैं

और मैं बेबस निरीह सा

अपने सर को झुकाये

काल्पनिक लोक के दृश्यों से

स्वयं को जोड़ने का

बेवजह प्रयत्न करता हूँ

जानता हूँ कि उन दृश्यों से

एकाकार असंभव है

फिर क्योँ तेरी प्रतीक्षा करूं

क्योँ तुझसे स्नेह करूं

ऐ नींद…

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Added by Sushil Sarna on June 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments

मेरे 3 मुक्तक ....

1.

थोड़ा सा झूठा  हूँ  ....

थोड़ा सा झूठा  हूँ थोड़ा  सा सच्चा हूँ

थोड़ा सा  बुरा  हूँ थोड़ा  सा अच्छा हूँ

भुला देना दिल से  मेरी गल्तियों को

दिल से तो यारो मैं थोड़ा सा बच्चा हूँ

सुशील सरना

......................................................

2.

तेरे अल्फ़ाज़ों से....

तेरे अल्फ़ाज़ों से हसीन जज़्बात बयाँ होते हैं

तेरे ख़तूत में कुछ बीते लम्हात निहाँ होते हैं

हर शब तेरे जिस्म की बू  से लबरेज़ होती है

हर ख़्वाब में बस तेरे…

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Added by Sushil Sarna on June 13, 2015 at 1:30pm — 4 Comments

धड़कन भी खो जायेगी....

आओ न !

मेरे शब्दों को सांसें दे दो

हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में

मेरे स्नेहिल शब्द

तुम्हें सम्बोधित करने को

आकुल रहते हैं

गयी हो जबसे

मयंक भी उदासी का

पीला लिबास पहन

रजनी के आँगन में बैठ

तुम्हारे आने का इंतज़ार करता है

न जाने अपने प्यार के बिना

तुम कैसे जी लेती हो

यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है

तुम बिन हर सांस अंतिम सांस है

तुम नहीं जानती

तुम्हारी न आने की ज़िद क्या कहर ढायेगी

जिस्म रहेंगे मगर

जिस्मों से…

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Added by Sushil Sarna on June 9, 2015 at 2:44pm — 16 Comments

ऊंचाई (लघु कथा)

लघु कथा - ऊंचाई

''पापा पापा जल्दी आओ, आफिस में देर हो रही है। ''

'' ओफ्फो ! एक मिनट तो रुको। ज़रा चप्पल तो पहन लूँ। द्वारका प्रसाद ने घर भीतर से आवाज़ दी। ''

''आ गया आ गया मेरे बेटे। ''

''इतनी देर कहाँ लगा दी पापा आपने। "

''वो बेटे पहले तो चप्पल नहीं मिली और मिले तो पहनते ही उसका स्टेप निकल गया बस इसी में थोड़ी देर हो गयी। द्वारका प्रसाद ने आँखों के चश्मे को ठीक करते हुए कहा। ''

''राहुल ने चमचमाती नयी गाड़ी का दरवाजा खोला और कहा चलो जल्दी बैठो। ''

वृद्ध…

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Added by Sushil Sarna on June 6, 2015 at 4:00pm — 40 Comments

मुलाकात..........

मुलाकात......

आजकल ग़मों में भी

बरसात कहाँ हो पाती है

सब से हो जाती है

पर खुद से बात कहाँ हो पाती है

फुर्सत ही नहीं इस तेज रफ्तार

जिन्दगी की राहों में

कि रुक कर

खुद से चंद लम्हे बात करें

कोई नहीं होता

जब रात के अँधेरे में

कैद से रिहा होते

अँधेरे से सवेरे में

बावजूद अकेला होने के

पलक कहाँ सो पाती है

दिल के निहाँखाने से

कहाँ ख़ुद की रिहाई हो पाती है

धीरे धीरे ज़िंदगी

कहीं गर्द में खो जाती है

बंद होते…

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Added by Sushil Sarna on June 4, 2015 at 6:41pm — 10 Comments

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